नई दिल्ली: अडाणी-हिंडनबर्ग मामले की जांच पूरी करने के लिए जांच का समय बढ़ाने की सिक्योरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई तक सुनवाई टाल दी है. यानी अप्रत्यक्ष तौर पर सुप्रीम कोर्ट से SEBI को जांच के दो माह का समय मिल गया है.
सेबी ने अडाणी-हिंडनबर्ग मामले की जांच पूरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से 6 माह का अतिरिक्त समय मांगा था. शुक्रवार को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने 6 महीने का अतिरिक्त समय देने से इंकार करते हुए मामले की सुनवाई 15 मई यानी सोमवार को तय की थी.
SEBI की याचिका पर सोमवार को न्यायालय समयाभाव और सीजेआई की पीठ के समक्ष दोपहर बाद तीन बजे विशेष बेंच में कुछ मामलों की पूर्व निर्धारित सुनवाई होने के चलते सुनवाई टल गयी थी.
देर शाम सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में सुनवाई की नई तारीख 10 जुलाई दर्शाते हुए सुनवाई को दो माह के लिए टाल दिया गया.
सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट Securities and Exchange Board of India ने सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामें के जरिए अपना जवाब भी पेश किया
SEBI की ओर से दिए गए हलफनामे में सर्वोच्च अदालत में कहा गया है कि 2016 से अब उसने अडानी समूह की किसी भी कंपनी की जांच नहीं की है, जैसा कि पहले कहा गया था.
CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष दायर किए गए हलफनामें में SEBI ने कहा है कि SEBI 2016 से अडानी समूह की कंपनियों की जांच कर रहा है, यह आरोप तथ्यात्मक रूप से निराधार है.
SEBI ने अडानी की कंपनियो की जांच के लिए अतिरिक्त समय का आवेदन करते हुए कहा कि "सेबी द्वारा दायर समय के विस्तार के लिए आवेदन का मतलब निवेशकों और प्रतिभूति बाजार के हित को ध्यान में रखते हुए न्याय सुनिश्चित करना है क्योंकि रिकॉर्ड पर पूर्ण तथ्यों की सामग्री के बिना मामले का कोई भी गलत या समय से पहले निष्कर्ष समाप्त नहीं होगा.
SEBI ने अपने जवाब में कहा है कि न्याय के लिए अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोप की जांच करना जरुरी है.
SEBI ने कहा कि अडानी समूह के मामले में जांच से पहले कोई निष्कर्ष निकालना न्याय के हित में नहीं होगा और जो कानूनी रूप से भी उचित नहीं हो सकता. सेबी ने कोर्ट को बताया कि उसने 11 देशों के रेग्यूलेटरों से संपर्क साधा है. सेबी ने इन रेग्यूलेटरों से अडानी समूह के बारे में जानकारी साझा करने को कहा है.
SEBI के अनुसार, हिंडनबर्ग रिपोर्ट में संदर्भित बारह लेन-देन से संबंधित एक जांच में कई न्यायालय में कई उप-लेनदेन थे. इसमें कहा गया है कि इन लेन-देन की गहन जांच के लिए सहायक दस्तावेजों के साथ विभिन्न स्रोतों से डेटा के मिलान की आवश्यकता होगी। इसके बाद, निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले एक विश्लेषण किया जाएगा.
गौरतलब है कि इस मामले में सुपीम कोर्ट द्वारा जांच के लिए गठित कि गयी छह सदस्यीय कमेटी की ओर से भी 8 मई को बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंप दी गयी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च के आदेश के जरिए रिटायर्ड जस्टिस एएम सप्रे की अध्यक्षता में 6 सदस्य कमेटी का गठन किया था. जस्टिस सप्रे की अध्यक्षता में गठित इस कमेटी में जस्टिस जेपी देवधर, ओपी भट, एमवी कामथ, नंदन नीलेकणि और सोमशेखर सुंदरेसन शामिल हैं.
कमेटी की रिपोर्ट पर 12 मई को सीजेआई ने कहा था कि जस्टिस सप्रे की अध्यक्षता में गठित की कमेटी की रिपोर्ट आ गई है और उसे हम सप्ताहांत में देखने के बाद सोमवार को सुनवाई करेंगे.
लेकिन सोमवार को इस मामले पर सुनवाई नही होने के बाद सुनवाई को अब 10 जुलाई तक के लिए टाल दिया गया है.
अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद मामले की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट 4 जनहित याचिकाएं दायर हुई थीं. एडवोकेट एम एल शर्मा, विशाल तिवारी, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सोशल वर्कर मुकेश कुमार ने ये याचिकाएं दायर की थीं.
याचिकाकर्ता मनोहर लाल शर्मा ने याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च के फाउंडर नाथन एंडरसन और भारत में उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच करने और FIR दर्ज करने की मांग की है.
इस मामले पर पहली बार 10 फरवरी को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने सुनवाई की.
गौररतलब है कि 24 जनवरी को अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में अडानी पर आरोपी लगाया गया है कि अपने स्टॉक की कीमतों को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर हेराफेरी और अनाचार किया गया.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद से, शेयर बाजार में अडानी के शेयरों में गिरावट आई है. स्टॉक की कीमतों में गिरावट के साथ अडानी समूह को अपने एफपीओ को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.
अडानी ग्रुप की ओर से भी इस मामले में 413 पन्नों का जवाब प्रकाशित करके आरोपों का खंडन करते हुए इसे भारत के खिलाफ हमला बताया था.
हिंडनबर्ग ने एक रिज्वाइंडर के साथ यह कहते हुए पलटवार किया था कि धोखाधड़ी को राष्ट्रवाद द्वारा अस्पष्ट नहीं किया जा सकता है और वह अपनी रिपोर्ट पर कायम है.
एम एल शर्मा की याचिका में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के पीछे एक बड़ी साजिश होने की भी जांच की मांग की गई है.