नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India) में संविधान के अनुच्छेद 370 के निराकरण (Abrogation of Article 370) के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई चल रही है। आज, 9 अगस्त, 2023 को सुनवाई का चौथा दिन है और आज पहली बार इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम (Gopal Subramaniam) अपना पक्ष रख रहे हैं।
इस मामले को एक विशेष संवैधानिक पीठ सुन रही है जिसकी अध्यक्षता देश क मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) कर रहे हैं। इस पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ न्यायाधीश संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul), न्यायाधीश संजीव खन्ना (Justice Sanjiv Khanna), न्यायाधीश बी आर गवई (Justice BR Gavai) और न्यायाधीश सूर्य कांत (Justice Surya Kant) शामिल हैं।
जैसा कि हमने आपको अभी बताया, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल कल अपनी आखिरी जिरह अदालत के समक्ष पेश कर चुके हैं और आज वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमणियम बहस कर रहे हैं।
गोपाल सुब्रमणियम ने कल ही अदालत के समक्ष यह बात कही थी कि वो अपनी बहस की शुरुआत जम्मू कश्मीर की संविधान सभा (Constituent Assembly) के फैसले से शुरू करेंगे।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने यह दलील पेश की कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना ब्रेक्जिट की तरह ही एक राजनीतिक कृत्य था, जहां ब्रिटिश नागरिकों की राय जनमत संग्रह के माध्यम से प्राप्त की गई थी। बता दें कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने को ‘ब्रेक्जिट’ कहा जाता है; ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलना राष्ट्रवादी उत्साह में वृद्धि, कठिन आप्रवासन मुद्दों और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के कारण हुआ।
कपिल सिब्बल की इस दलील से मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ संतुष्ट नहीं हुए, उन्होंने कहा, “संवैधानिक लोकतंत्र में, लोगों की राय जानने का काम स्थापित संस्थानों के माध्यम से किया जाना चाहिए। आप ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह जैसी स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते।'' उन्होंने सिब्बल के इस विचार से सहमति जताई कि ब्रेक्जिट एक राजनीतिक निर्णय था, लेकिन कहा, "हमारे जैसे संविधान के भीतर जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है।"
2 अगस्त, 2023 से इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई है और उस दिन से कपिल सिब्बल अनुच्छेद 370 के निराकरण के खिलाफ अपना पक्ष रख रहे हैं। अपनी आखिरी जिरह में कपिल सिब्बल ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने वाली आवाज आखिर कहां है, पिछले चार सालों में उन्हें क्यों नहीं सुना गया है? आपने एक कार्यकारी अधिनियम (Executive Act) के जरिए 'अनुमति' को समाप्त कर दिया, आप उनकि राय नहीं लेते हैं.. हम आज ये कहां खड़े हैं?'
कपिल सिब्बल आगे कहते हैं, 'माना कि संविधान एक राजनैतिक दस्तावेज है लेकिन आप राजनीतिक उद्देश्य के लिए इसके प्रावधानों में हेरफेर नहीं कर सकते। समय या गया है कि अदालत हस्तक्षेप करे क्योंकि अगर लोगों की आवाज को इस तरह की कार्यकारी गतिविधियों के माध्यम से शांत करा दिया जाएगा तो हमारे भविष्य में क्या होगा?
अपनी अंतिम जिरह पेश करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा, 'न सिर्फ आज के लिए बल्कि आने वाले कल के लिए भी ये एक ऐतिहासिक मामला है। मैं उम्मीद करता हूँ कि अदालत इसके लिए खड़ी होगी।