सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को जमानत दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने शराब नीति घोटाले में अरविंद केजरीवाल को ईडी मामले में अंतरिम जमानत और नियमित जमानत दिलाने में सफल रहे. सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को ईडी और सीबीआई, दोनों मामले में नियमित जमानत दे दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट ऑर्डर में दोनों पक्षों की दलीलों का जिक्र किया है, जिसमें सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी मनीष सिसोदिया की ओर से, तो वहीं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू जांच एजेंसी की ओर से पेश हुए. अभिषेक मनु सिंघवी ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए जमानत की मांग की. वहीं अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों का विरोध करते हुए एसएसजी ने कहा कि अगर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दूसरा विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर करने की इजाजत नहीं जा सकती है, जब उसी आदेश से पहले एक एसएलपी को खारिज किया जा चुका हो. (बता दें कि मनीष सिसोदिया ने दूसरी बार जमानत की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गए हैं.)
अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से, 30 अक्टूबर 2023 के अपने पहले आदेश के माध्यम से, अपीलकर्ता को जमानत के लिए एक नया आवेदन दायर करने की इजाजत दी थी. साथ सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि यदि मुकदमा अगले 6-8 महीनों के भीतर समाप्त नहीं होता है और यदि मुकदमा शुरू होने के अगले तीन महीनों में कछुए की गति से आगे बढ़ता है, तो वे जमानत की मांग कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर ए़डवोकेट के इस बयानो को तवज्जो दी.
अभिषेक मनु सिंघवी ने चार्जशीट दायर करने की प्रक्रिया पर कहा कि ईडी मामले में 10 मई 2024, 17 मई 2024 और 20 जून 2024 को तीन और पूरक शिकायतें दर्ज की गई हैं. मामले में अदालत के सामने पेश किए गए आरोप पत्रों का हवाला देते हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ईडी मामले में, ईडी ने 224 गवाहों को रखा है और 32,000 पृष्ठों के दस्तावेज पेश किए हैं. उन्होंने आगे बताया कि सीबीआई मामले में, सीबीआई ने 269 गवाहों का हवाला दिया है और करीब 37,000 पन्नों के दस्तावेज पेश किए हैं. इसलिए यह कहा गया है कि सीबीआई द्वारा दायर चौथे पूरक आरोप-पत्र में शामिल गवाहों को छोड़कर कुल 493 गवाह हैं, जिनसे पूछताछ करनी होगी और कुल मिलाकर दस्तावेज करीब 69,000 पन्नों के हैं.
ASG ने आगे कहा कि अपीलकर्ता (मनीष सिसोदिया) एक बहुत प्रभावशाली व्यक्ति है, जो इस अपराध के समय दिल्ली के उपमुख्यमंत्री के पद पर थे. उन्होंने दावा किया कि अगर अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो उसके गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ करने की पूरी संभावना है.
डॉ. सिंघवी ने अपने जवाब दिया कि यह कहना कि अपीलकर्ता द्वारा सीआरपीसी के धारा 207 तहत आवेदन दायर किए जाने के कारण मुकदमे में देरी हो रही है, पूरी तरह से गलत है। उन्होंने कहा कि उक्त आवेदन दायर करना आवश्यक था क्योंकि अभियोजन पक्ष ने आरोपियों को दोषमुक्त करने वाले दस्तावेजों को अविश्वसनीय दस्तावेजों' (Unbelieveble Documents) की श्रेणी में रखकर रिकॉर्ड पर नहीं रखा था.
अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दीं कि निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार (Right To Fair Trial) का लाभ उठाने और धारा 207 सीआरपीसी में निहित प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों (Natural Justice Principle) का पालन करने के लिए अपीलकर्ता को ऐसे आवेदन दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा. हालांकि, इनमें से प्रत्येक आवेदन का अभियोजन पक्ष द्वारा कड़ा विरोध किया गया. यह दलील दी गई है कि उक्त सामग्री को अदालत में पेश किया जाना चाहिए.
अभिषेक मनु सिंघवी ने दावा किया कि अभियोजन पक्ष(जांच एजेंसी) कुछ दस्तावेजों को 'अविश्वसनीय बताकर' छिपा रही हैं, जबकि मेरा मानना है वे दस्तावेज आरोपियों को बेगुनाह साबित करने वाले हैं. उन्होंने कहा कि उन दस्तावेजों को सामने लाने से अभियोजन पक्ष ने इंकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने दलीलों पर विचार किया कि सबसे दोबारा से SLP दायर की जा सकती है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने से इंकार करते हुए घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि इस अदालत ने अभियोजन पक्ष के 6-7 महीने में मुकदमा समाप्त करने के दावे पर अपीलकर्ता की मांग को खारिज की थी, साथ ही ऐसा नहीं होने की स्थिति में दोबारा से जमानत की मांग करने की स्वतंत्रता दी थी. साथ ही अदालत ने ये भी कहा था कि यदि परिस्थितियां बदलती हैं या अगले तीन महीनों में मुकदमा धीरे-धीरे, कछुए की चाल से, आगे बढ़ता है, तो याचिकाकर्ता फिर से जमानत के लिए आवेदन कर सकता था.
इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक मामले को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. इसके अलावा, 493 गवाहों की जांच की जानी है, जिसमें कुल मिलाकर लगभग 69,000 पन्नों के दस्तावेज़ हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा,
भले ही आरोप गंभीर आर्थिक अपराध का हो, लेकिन यह नियम नहीं है कि हर मामले में जमानत देने से इनकार किया जाना चाहिए. आखिरकार, तथ्यों के आधार पर हर मामले पर विचार किया जाना चाहिए. जेल और जमानत का प्राथमिक उद्देश्य सुनवाई के दौरान अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करना है. इस मामले में अपीलकर्ता के भागने का जोखिम था या सबूतों के साथ छेड़छाड़ या गवाहों को प्रभावित करने की संभावना थी, इस तर्क को अदालत ने खारिज करती है.
सुप्रीम कोर्ट ने राइट टू स्पीडी ट्रायल का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, और इस मामले में हाईकोर्ट व ट्रायल कोर्ट द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया गया है. उक्त बातों पर ध्यान रखकर सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को राहत दे दी है.