आज सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के अधिकारियों को 31 जनवरी तक जाम्भालखोरी बोरफाड़ी के गांव वालों को मुआवजा जारी करने का आदेश दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि यह भूमि अधिग्रहण का एक क्लासिक केस है, जहां ग्रामीणों को मुआवजा नहीं दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे इस मामले को एक सप्ताह के भीतर संज्ञान में लें और बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुसार 31 जनवरी तक लोगों को मुआवजा दें. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि अगर 31 जनवरी तक किसानों को मुआवजा नहीं दिया गया, तो वे संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना का मामला शुरू करें.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह क्लासिक केस है जहां महाराष्ट्र सरकार ने उन लोगों को मुआवजा देने से इनकार किया, जिनकी भूमि अनिवार्य रूप से अधिग्रहित की गई. रिकॉर्ड के अनुसार, 1.49 करोड़ रुपये से अधिक के भुगतान के आदेश के बावजूद, प्रभावित ग्रामीणों को मुआवजा नहीं दिया गया.
अदालत ने राज्य अधिकारियों के व्यवहार पर निराशा व्यक्त की और कहा कि उन्होंने इस मामले में हल्का रुख अपनाया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे इस मामले को एक सप्ताह के भीतर संज्ञान में लें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रभावित लोगों को मुआवजे की राशि को जारी करने के लिए आवश्यक स्वीकृति दी जाए, साथ ही ब्याज और अन्य लागत भी दी जाए.
हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुसार, भूमि मालिकों और समान स्थिति में अन्य व्यक्तियों को 31 जनवरी तक अदायगी करनी होगी. इसके साथ ही अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की जाए. यह निर्णय बीड जिले के कलेक्टर को नोडल अधिकारी के रूप में कार्य करने के लिए निर्देशित करता है ताकि ग्रामीणों को धनराशि प्राप्त हो सके.
बेंच ने बीड कलेक्टर को निर्देश दिया है कि वह यह सुनिश्चित करें कि सभी संबंधित व्यक्तियों को समय पर मुआवजा मिले. इसके साथ ही मुख्य सचिव को निर्देश देते हुए कहा कि वे कलेक्टर से स्पष्टीकरण मांगे कि कौन सा विभाग मुआवजे का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा कि यदि 31 जनवरी तक मुआवजा देने की प्रक्रिया पूरी नहीं होती है, तो बंबई हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल सभी संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करेंगे. अदालत ने यह भी कहा कि 1 लाख रुपये की लागत उन अधिकारियों से वसूली जाएगी जो मुआवजे के भुगतान में विफल रहे है.
यह मामला साल 2005 के पानी की टंकी के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण से संबंधित है, जिसमें गांववालों ने मुआवजे का भुगतान न होने पर अदालत में याचिका दायर की. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई गई हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि धन की कोई कमी नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार विभिन्न योजनाओं जैसे 'लड़की बहन' आदि के माध्यम से धन वितरण किया जा रहा है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कलेक्टर या जिला परिषद पर 1 लाख रुपये का लागत लगाया, क्योंकि उन्होंने पिछले 19 वर्षों में मुआवजा नहीं दिया.
(खबर पीटीआई इनपुट से है)