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अपराध भय पैदा करता है, सामाजिक स्थिरता के लिए न्याय का संतुलन आवश्यक: सुप्रीम कोर्ट

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि प्रत्येक सभ्य समाज में, आपराधिक प्रशासनिक प्रणाली का उद्देश्य समाज में विश्वास और एकजुटता पैदा करने के अलावा व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा करना और सामाजिक स्थिरता और व्यवस्था को बहाल करना रहा है.

सुप्रीम कोर्ट

Written by My Lord Team |Published : January 7, 2025 11:54 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने पांच दोषियों की अपील को खारिज करते हुए कहा कि जिस अपराध ने समाज में भय पैदा किया है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है. मामले के दौरान दोषियों के वकील ने तर्क दिया कि जांच रिपोर्ट ठीक से नहीं बनाई गई थी और प्रत्यक्षदर्शियों ने केवल दुश्मनी के कारण आरोपी व्यक्तियों को फंसाने के लिए बयान दोहराए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा   मामला 2002 में आरएसएस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हिंसक झड़प से संबंधित है, जिसमें दो आरएसएस कार्यकर्ताओं की मौत हुई. मामले में केरल हाईकोर्ट ने पांच आरोपियों को दोषी ठहराया था, जिस फैसले के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.

सामाजिक स्थिरता के लिए न्याय का संतुलन आवश्यक: SC

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने कहा कि प्रत्येक सभ्य समाज में, आपराधिक प्रशासनिक प्रणाली का उद्देश्य समाज में विश्वास और एकजुटता पैदा करने के अलावा व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा करना और सामाजिक स्थिरता और व्यवस्था को बहाल करना रहा है.

पीठ ने कहा,

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‘‘अपराध सामाजिक भय की भावना पैदा करता है और यह सामाजिक विवेक पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. यह असमान और अन्यायपूर्ण है... अदालतों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में एक तरफ अभियुक्तों के हित और दूसरी तरफ राज्य/समाज के बीच संतुलन बनाने का काम सौंपा गया है. जब घटना की पुष्टि करने वाले साक्ष्य मजबूत हों तो केवल विरोधाभास या दोषपूर्ण जांच के आधार बनाने से दोषियों को छोड़ा नहीं जा सकता.’’

पीठ ने ये टिप्पणियां 2002 के एक हत्या मामले में पांच दोषियों की अपील को खारिज करते हुए कीं.

दोषियों के वकील ने तर्क दिया कि जांच रिपोर्ट ठीक से नहीं बनाई गई थी और प्रत्यक्षदर्शियों ने केवल दुश्मनी के कारण आरोपी व्यक्तियों को फंसाने के लिए बयान दोहराए.

अदालत ने कहा, हालांकि गवाहों के बयानों में असंगतता थी लेकिन इससे उनकी गवाही अविश्वसनीय नहीं होगी.

पीठ ने कहा,

‘‘सिर्फ इसलिए कि सुजीश का शव दूसरे पीड़ित सुनील के शव के स्थान से थोड़ी दूर पर मिला था, यह अभियोजन के पूरे मामले को खारिज करने का एकमात्र और निर्णायक कारक नहीं हो सकता है.’’

क्या है मामला?

एक मार्च 2002 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और विश्व हिंदू परिषद (VHP)ने बंद का आह्वान किया था. विरोध प्रदर्शन के दौरान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और आरएसएस के सदस्यों के बीच झड़प हुई थी. इस हिंसक झड़प में आरएसएस के 11 सदस्य मेलूर नदी के पास डर कर छिप गए, लेकिन उस जगह भी हथियार से लैस अज्ञात लोगों ने उन पर हमला किया, जिसमें दो आरएसएस की कार्यकर्ताओं को अपनी जान गवानी पड़ी, इस घटना में उनके बाकी साथी वहां से भागने में सफल रहे. इस घटना को लेकर पुलिस ने FIR दर्ज की, जिसमें15 लोगों को आरोपी बनाते हुए आईपीसी की धारा 302 (हत्या), धारा 149 (अवैध सभा) और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 के तहत मामला दर्ज किया.

(खबर एजेंसी से है)