नई दिल्ली: एक नाबालिग के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए मेघालय हाई कोर्ट ने कहा कि 16 वर्ष की किशोरी यौन संबंध को लेकर सोच समझकर फैसला लेने में सक्षम है. एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार, इस मामले की सुनवाई जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की पीठ कर रही थी.
अदालत ने कहा कि इस आयु वर्ग की किशोरी के शारीरिक और मानसिक विकास को देखते हुए यह तर्कसंगत माना जायेगा कि ऐसा व्यक्ति संभोग से संबंधित मामलों में अपनी भलाई को लेकर सोचने समझने में सक्षम है.
खबरों के मुताबिक याचिकाकर्ता कई घरों में काम किया करता था. इसी दरम्यान वो पीड़िता के संपर्क में आया. जिसके बाद कथित पीड़िता और याचिकाकर्ता दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे.
आरोप है कि दोनों ने याचिकाकर्ता के चाचा के घर पर यौन संबंध बनाए. अगली सुबह नाबालिग लड़की की मां ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की धारा 363 और यौन अपराधों से बच्चों का सुरक्षा अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences - POCSO), 2012 की धारा 3 और 4 के तहत पहली सूचना रिपोर्ट (First Information Report- FIR) दर्ज करवाया.
याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ पोक्सो के तहत दर्ज शिकायत को रद्द करने की मांग अदालत से की थी. खबरों के अनुसार याचिकाकर्ता ने अदालत में यह तर्क दिया कि कथित घटना यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता. वहीं पीड़िता ने खुद दंड प्रक्रिया संहिता ( Code of Criminal Procedure- CrPC) की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयानों में और अदालत में दिए गवाह से यह स्पष्ट किया कि वह याचिकाकर्ता की प्रेमिका है. दोनों के बीच जो संबंध बने वो आपसी सहमति से बने है इसमें किसी तरह का कोई बल का प्रयोग नहीं किया गया.
दर्ज आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि 16 वर्ष की उम्र में नाबालिग होने के बाद भी पीड़िता ने याचिकाकर्ता के पक्ष में बयान दिया है.
अदालत के मुताबिक पीड़ित के आयु वर्ग में, व्यक्तियों के शारीरिक और मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए यह मान लेना उचित है कि वे संभोग के संबंध में सोच-समझकर निर्णय लेने में सक्षम हैं.