नई दिल्ली: यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) का कटु अनुभव ज्यादातर लड़किया महसूस करती हैं, कभी सड़क पर, कभी किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट में, स्कूल हो या कॉलेज में या फिर अपने ही घर में. इतना ही नहीं, महिलाएं इसकी शिकार अपने दफ्तर में भी होती रहती हैं. इन्ही अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए ही यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (Protection of Women Act), 2013 बनाया गया है. इस अधिनियम के तहत ये बताया गया है कि यौन उत्पीड़न किसे माना जाएगा.
इस अधिनियम के तहत निम्नलिखित व्यवहार या कृत्य ‘यौन उत्पीड़न’ की श्रेणी में आता हैं जैसे
.इच्छा के खिलाफ छूना या छूने की कोशिश करना.
.शारीरिक रिश्ता/यौन सम्बन्ध बनाने की मांग करना या उसकी उम्मीद करना.
.यौन स्वभाव की (अश्लील) बातें करना.
.अश्लील तस्वीरें, फिल्में या अन्य सामग्री दिखाना.
.कोई अन्य कर्मी यौन प्रकृति के हों, जो बातचीत द्वारा , लिख कर या छू कर किये गए हों.
साल 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम (The Protection of Women Against Sexual Harassment (POSH) Act, 2013) को पारित किया गया था. यह अधिनियम उन संस्थाओं पर लागू होते हैं जहां दस से अधिक लोग काम करते हैं.
ये अधिनियम 9 दिसम्बर, 2013, में प्रभाव में आया था. इसके उद्देश्य रोकथाम, निषेध और निवारण को स्पष्ट करता है और उल्लंघन के मामले में, पीड़ित को निवारण प्रदान करने के लिये भी ये काम करता है.
ये अधिनियम विशाखा केस में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिये गये लगभग सभी दिशा-निर्देशों को धारण करता है और ये बहुत से अन्य प्रावधानों को भी निहित करता है. ये अधिनियम अपने क्षेत्र में गैर-संगठित क्षेत्रों जैसे ठेके के व्यवसाय में दैनिक मजदूरी वाले श्रमिक या घरों में काम करने वाली नौकरानियाँ या आयाएं आदि को भी शामिल करता है.
सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले के एक ऐतिहासिक फैसले में 'विशाखा दिशा निर्देश' दिये.
इन दिशा निर्देशों ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 ("यौन उत्पीड़न अधिनियम") का आधार बनाया.
यह अधिनियम महिलाओं के साथ उनके दफ्तर में होने वाले यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है और शिकायतों के निवारण के लिये एक तंत्र बनाता है.
इस अधिनियम के तहत प्रत्येक नियोक्ता (Employer) को प्रत्येक कार्यालय या शाखा में 10 या अधिक कर्मचारियों के साथ एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन करना आवश्यक है.
शिकायत समितियों को सबूत जुटाने के लिये दीवानी न्यायालयों की शक्तियां प्रदान की गई है. शिकायत समितियों को शिकायतकर्ता द्वारा अनुरोध किये जाने पर जांच शुरू करने से पहले सुलह का प्रावधान करना होता है.
दंडात्मक प्रावधान
इस अधिनियम के तहत अगर कोई नियोक्ताओं इसमें बताए गए नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके लिए दंड निर्धारित किया गया है.
अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर नियोक्ता को जुर्माना देना होगा. बार-बार उल्लंघन करने पर अधिक दंड और व्यवसाय संचालित करने के लिये लाइसेंस या पंजीकरण रद्द किया जा सकता है.
प्रशासन की ज़िम्मेदारी
राज्य सरकार हर ज़िले में जिला अधिकारी को अधिसूचित करेगी, जो एक स्थानीय शिकायत समिति ( Local Complaints Committee- LCC) का गठन करेगा ताकि असंगठित क्षेत्र या छोटे प्रतिष्ठानों में महिलाओं को यौन उत्पीड़न बचाया जा सके.
.यह क़ानून कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता है.
.यह क़ानून यौन उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को चिह्नित करता है, और यह बताता है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है.
.यह क़ानून हर उस महिला के लिए बना है जो अपने दफ्तर में यौन उत्पीड़न की शिकार हो रही हैं.
.इस क़ानून में यह ज़रूरी नहीं है कि जिस कार्यस्थल पर महिला का उत्पीड़न हुआ है,वह वहां नौकरी करती हो.
कार्यस्थल कोई भी कार्यालय/दफ्तर हो सकता है,चाहे वह निजी संस्थान हो या सरकारी.
शिकायत कौन कर सकता है
जिस महिला के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न हुआ है, वह शिकायत कर सकती है.