हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद दिलचस्प वाक्या हुआ. सुप्रीम कोर्ट के पास एक अपील का मामला सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी. अदालत के तमाम कोशिशों के बाद ये पता नहीं चल पाया कि याचिका किसने दायर की (Who Filed petition? Supreme Court asked CBI to find out). अपीलकर्ता से जवाब तलब किया गया तो पता कि उसने तो हाईकोर्ट के फैसले को आगे चुनौती देने की इच्छा जाहिर नहीं की थी. यह मामला तब सामने आया जब शख्स ने कहा कि वे उसका पक्ष रख रहे किसी भी वकील को नहीं जानता था. व्यक्ति ने कहा कि उसने कभी इन वकीलों से संपर्क नहीं किया ना ही उनसे अपील दायर करने को कहा.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ के सामने ये मामला आया. जस्टिस ने इस स्थिति को न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग बताया. सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को बेहद गंभीर बताते हुए कहा कि न्याय प्रणाली पर सवालिया निशान लगा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में जाली दस्तावेज, असल याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना दायर झूठी कार्यवाही को देखते हुए इसलिए इस मामले को सीबीआई को देना बेहतर होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को 'असल याचिकाकर्ता' का पता लगाने के निर्देश दिए है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को मामले में अपनी जांच पूरी कर दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि जिन वकीलों से अदालत की सहायत करने की अपेक्षा की जाती है वे बेईमान वादियों से मिलकर गलत याचिका दायर करने में बराबर की भूमिका निभा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वकीलों द्वारा मुवक्किल को राहत दिलाने के लिए गलत जानकारी देने पर नाराजगी जाहिर की है. सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट ऑन रिकार्ड(AOR) के रवैये को लेकर कहा कि हम वकीलों के भरोसे रहते हैं कि वे हमसे ईमानदारी बरतें. वहींं, वे अपने मुवक्किल को राहत दिलाने के लिए हमसे झूठ बता रहे हैं.