क्या आरोपी के बरी होने के बाद अदालत उसी मामले में दोबारा से जांच के आदेश दे सकती है? कानूनी प्रक्रिया से जुड़े इस अहम सवाल पर आज सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत ने कहा कि जब आरोपी को बरी किया जाता है, तो अदालत फिर से उसी अपराधिक मामले में उसके खिलाफ दोबारा से जांच के आदेश नहीं दे सकती है. सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द करते हुए आया, जिसमें आरोपी के खिलाफ, पहले से बरी किए गए अपराधिक मामले में, नए सिरे से जांच का आदेश दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने यह मर्डर से जुड़े मामले में की है, जिसमें आरोपी दोबारा से जांच के, मद्रास हाईकोर्ट के, आदेश को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट के दोबारा से जांच के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि दोषपूर्ण जांच के आधार पर पुनः जांच शुरू करने का आदेश देना उचित नहीं है और मामले में आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए.
हत्या और किडनैपिंग से जुड़े इस मामले में पहले आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने दोषी पाया था. ट्रायल कोर्ट के फैसले को आरोपी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, तब हाईकोर्ट ने पुलिस जांच में खामियों और गवाहों के अभाव में आरोपी व्यक्ति को बरी कर दिया था. इसी फैसले में मद्रास हाईकोर्ट ने मामले को सीबीआई को सौंपते हुए नए सिरे से जांच रकने का आदेश दिया था. सीबीआई ने जांच करने के बाद आरोपी (अपीलकर्ता) के खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया.
सीबीआई द्वारा शुरू की गई कार्यवाही के खिलाफ, अपीलकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 482 तहत इस मामले को रद्द करने की मांग हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसे उच्च न्यायालय ने स्वीकार करने से इंकार किया. अब इसी फैसले को अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. अपीलकर्ता ने तर्क किया कि पुनः जांच और नए मुकदमे से संविधान के अनुच्छेद 20(2) और सीआरपीसी की धारा 300 तहत दोहरे दंड (Double Jeoparady) के सिद्धांत का उल्लंघन है. संविधान के अनुच्छेद 20 (2) में कहा गया है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.