हाल ही में सुप्रीम कोर्ट जस्टिस बीवी नागरत्ना ने मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा ‘ब्रेकिंग ग्लास सीलिंग: वूमेन हू मेड इट’ विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया. कार्यक्र्म के दौरान उन्होंने ज्यूडिशियरी में महिलाओं की भागदारी को बढ़ाने को लेकर काफी जोर दिया. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने ग्राम पंचायतों में महिलाओं के आरक्षण की जिक्र करते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों का पक्ष रखने वाले विधि अधिकारियों (Law Officer) में भी कम से कम 30 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित होनी चाहिए. इस कार्यक्रम के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने सवाल किया कि यदि 45 वर्ष से कम आयु के पुरुष अधिवक्ताओं को हाई कोर्ट में नियुक्त किया जा सकता है, तो सक्षम महिला अधिवक्ताओं को क्यों नहीं.
जस्टिस नागरत्ना ने हाई कोर्ट के जज के रूप में सक्षम महिला अधिवक्ताओं की पदोन्नति का आह्वान किया जिससे जजशिप में अधिक विविधता (Diversity) लाई जा सके. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि युवा महिलाओं के पास ऐसे आदर्श और मार्गदर्शकों का अभाव है जो उन्हें कानूनी पेशे में आगे बढ़ने और सफल होने के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित और मदद कर सकें.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा,
‘‘सफलतापूर्वक बंदिशों को तोड़ने के लिए, हमें कल की लड़कियों और महिलाओं को जेंडर बेस्ड पूर्वाग्रहों से नहीं गुजरने देना चाहिए. सफलता के लिए कोई ऐसा गुण नहीं है जो केवल पुरुषों के लिए हो और महिलाओं में न हो.’’
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि आम महिलाओं के जीवन को भी मान्यता दी जानी चाहिए, जिनकी प्राथमिक भूमिकाएं मां, पत्नी और देखभाल करने वाली की हैं. जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा,
‘‘यह भी जरूरी है कि हम उन महिलाओं के महत्व को पहचानें जिन्होंने बंदिशों को तोड़ दिया और उनके मार्ग का अनुसरण करें. साथ ही, हमें उन महिलाओं को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने भले ही उच्च-स्तरीय उपलब्धियों के माध्यम से सुर्खियां नहीं बटोरीं, लेकिन उनका योगदान महत्वपूर्ण है और जिन्होंने अपने आसपास के लोगों के जीवन पर अपनी छाप छोड़ी है. उनका महत्व हमेशा दिखाई नहीं देता, लेकिन कई मायनों में, ये महिलाएं ही हैं जो अपने परिवार के सदस्यों के लिए बाहरी दुनिया से जीतने का आधार बनाती हैं. बच्चों की परवरिश और घर-परिवार को संभालने के लिए भी काफी नेतृत्व, बौद्धिक क्षमता और रचनात्मकता की आवश्यकता होती है.’’
जस्टिस नागरत्ना ने रेखांकित किया कि न्यायपालिका को हर स्तर पर संवेदनशील, स्वतंत्र और पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए.
अपने संबोधन के आखिरी कुछ भाग में जस्टिस नागरत्ना कहा कि हालांकि अग्रणी विधि विद्यालयों और विश्वविद्यालयों से स्नातक होकर जूनियर स्तर पर काम करने वाली महिला स्नातकों की संख्या उनके पुरुष समकक्षों के लगभग बराबर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वर्कप्लेस पर या बाद में उच्च पदों पर समान प्रतिनिधित्व होगा. जस्टिस कहा कि उनकी उन्नति की गतिशीलता प्रणालीगत भेदभाव से बाधित है. समाज की सेवा करने वाले व्यवसायों में लैंगिक विविधता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां महिलाओं की उपस्थिति समानता और निष्पक्षता के आदर्श को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर वंचित समूहों के बीच. जहां तक कानूनी पेशे का सवाल है, केंद्र या राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले कम से कम 30 प्रतिशत विधि अधिकारी महिलाएं होनी चाहिए.