सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट की टिप्पणी, लड़कियों को यौन इच्छा को नियंत्रित रखना चाहिए, को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में कलकत्ता हाईकोर्ट की पॉक्सो मामले में इस विवादित टिप्पणी पर संज्ञान लिया था. वहीं बंगाल सरकार ने आरोपी को बरी करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले और टिप्पणी दोनों को रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. जजमेंट लिखने के तरीकों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जजों के लिए दिशानिर्देश जारी किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब अदालत दोषसिद्धि के आदेश के विरुद्ध अपील पर विचार करता है, तो फैसले में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए;
अपीलीय न्यायालय को मौखिक और दस्तावेजी दोनों साक्ष्यों पर गौर करना चाहिए और उनका पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए. साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन करने के बाद, अपीलीय अदालत को अभियोजन पक्ष के साक्ष्य को स्वीकार करने या अभियोजन पक्ष के साक्ष्य पर अविश्वास करने के कारणों को दर्ज करना चाहिए. अदालत को यह तय करने के लिए कारण स्पष्ट करना चाहिए कि अभियुक्त के खिलाफ आरोप साबित हुए हैं या नहीं. किसी दिए गए मामले में, यदि दोषसिद्धि की पुष्टि हो जाती है, तो न्यायालय को सजा की वैधता और पर्याप्तता से निपटना होगा. ऐसे मामले में, सजा की वैधता और पर्याप्तता पर कारणों के साथ एक निष्कर्ष दर्ज किया जाना चाहिए.
फैसले का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अदालत के समक्ष मौजूद पार्टियों को पता हो कि मामला उनके पक्ष में या उनके विरुद्ध क्यों तय किया गया है. इसलिए, फैसला सरल भाषा में होना चाहिए. अदालत द्वारा कानूनी या तथ्यात्मक मुद्दों पर निर्णय में दर्ज किए गए निष्कर्षों को ठोस कारणों से समर्थित होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने जजों को जजमेंट लिखने व बाध्यता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अदालत हमेशा पार्टियों के आचरण पर टिप्पणी कर सकता है. हालांकि, पक्षों के आचरण के बारे में निष्कर्ष केवल ऐसे आचरण तक ही सीमित होना चाहिए जिसका निर्णय लेने पर असर पड़ता हो. अदालत के फैसले में जज की व्यक्तिगत राय नहीं हो सकती. इसी तरह, अदालत द्वारा पक्षों को सलाह या सामान्य रूप से सलाह शामिल करके सलाहकार क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
अदालत को किसी मामले का फैसला करना होता है, उपदेश सुनाना नहीं होता है.
जजमेंट में अप्रासंगिक और अनावश्यक सामग्री नहीं हो सकती. निर्णय सरल भाषा में होना चाहिए और बहुत अधिक नहीं होना चाहिए. संक्षिप्तता गुणवत्तापूर्ण निर्णय की पहचान है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
हमें याद रखना चाहिए कि निर्णय न तो कोई थीसिस है और न ही साहित्य का कोई टुकड़ा.
हालांकि, हम पाते हैं कि विवादित निर्णय में जज की व्यक्तिगत राय है जो युवा पीढ़ी को सलाह देती है.
सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणियों के साथ कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर स्पेशल कोर्ट के फैसले को वापस से बरकरार रखा है. स्पेशल कोर्ट ने अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 की उपधारा (2)(N) तथा (3) तथा पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत दण्डनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है. वहीं सजा तय करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्ट कमेटी पर भरोसा जताया है.
पॉक्सो अधिनियम की धारा 6: पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट के लिए सजा- जो कोई भी पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट करता है, उसे कम से कम दस वर्ष की कठोर कारावास की सजा दी जाएगी, लेकिन जो आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकती है और जुर्माना भी देना होगा.
इस मामले में, इस पर कोई विवाद नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता पर यौन उत्पीड़न किया. परिणामस्वरूप पीड़िता गर्भवती हो गई थी. आईपीसी की धारा 375 के अनुसार, 18 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ उसकी सहमति से या उसके बिना यौन संबंध बनाना बलात्कार का अपराध माना जाता है.