.सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि राज्य बार काउंसिल (एसबीसी) और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत वकील के रूप में नामांकन के लिए पूर्व शर्त के रूप में निर्धारित नामांकन शुल्क और स्टांप शुल्क (यदि कोई हो) के अलावा अन्य शुल्क के भुगतान की मांग नहीं कर सकते हैं.
वकीलों से एडवोकेट एक्ट के अनुसार ही ले एनरोलमेंट फी, सुप्रीम कोर्ट ने बार काऊंसिल को चेताया
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एसबीसी का नामांकन के समय एडवोकेट एक्ट की धारा 24 (1) (एफ) के तहत कानूनी शर्त से अधिक शुल्क और शुल्क लेने का निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 (1) (जी) का उल्लंघन करता है. धारा 24(1)(एफ) के अनुसार वर्तमान में एसबीसी को 600 रुपये और सामान्य उम्मीदवारों द्वारा बीसीआई को 150 रुपये तथा एससी और एसटी उम्मीदवारों द्वारा कुल 125 रुपये नामांकन शुल्क का प्रावधान है. पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला भी शामिल थे, ने बार काउंसिल से यह सुनिश्चित करने को कहा कि नामांकन के समय ली जाने वाली फीस धारा 24(1)(एफ) के अनुरूप हो तथा विभिन्न नामकरणों की आड़ में प्रावधान को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न किया जाए.
शीर्ष अदालत ने कहा,
"एसबीसी नामांकन शुल्क की आड़ में विविध शुल्क और प्रभार लगा रहे हैं, जो कुल मिलाकर धारा 24(1)(एफ) के तहत वैधानिक प्रावधान से अधिक है. निर्धारित राशि से अधिक नामांकन शुल्क लेने का एसबीसी का निर्णय अधिवक्ता अधिनियम के विधायी उद्देश्य के विपरीत है."
इसने स्पष्ट किया कि उसके निर्णय का भावी प्रभाव होगा और एसबीसी को उसके निर्णय की तिथि से पहले एकत्र की गई अतिरिक्त नामांकन फीस को वापस करने की आवश्यकता नहीं है.
पूरा मामला क्या हैं?
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल जुलाई में अत्यधिक नामांकन फीस से संबंधित विभिन्न याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया था, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा दायर एक आवेदन पर विभिन्न उच्च न्यायालयों में विचाराधीन थीं.