Rights of Prisoners: महात्मा गांधी ने कहा था, अपराध से घृणा करों, अपराधी से नहीं. भारतीय न्यायिक प्रणाली भी इसी बात से सहमत हैं. ज्यूडिशियल कस्टडी, जेल में गए अपराधी को उसके कृत्यों पर सोचने-सुधार करने का समय देती है. वहीं संविधान का अनुच्छेद 21, जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत सुरक्षा को सुनिश्चित करती है. हिरासत में रहने के दौरान कैदियों के पास कुछ अधिकार भी है. हालांकि अधिकारों की चर्चा करें, उससे पहले हिरासत के बारे में जानते हैं...
गिरफ्तारी के बाद हिरासत (Custody) होती है. हर मामले में ऐसा नहीं है, कुछ मामलों में व्यक्ति अदालत के सामने भी आत्मसमर्पण (Surrender) करता है. इसमें गिरफ्तारी नहीं होती है. ये बाते जस्टिस कृष्णा अय्यर ने निरंजन सिंह बनाम प्रभाकरण राजाराम खरोटे केस में सीआरपीसी की धारा 438 में कहे हिरासत शब्द की व्याख्या करते हुए कहा. अपराधिक मामलों में यह दो प्रकार की होती है. पहला, पुलिस हिरासत. दूसरा, न्यायिक हिरासत.
पुलिस द्वारा किसी संज्ञेय अपराध करने के संदेह में गिरफ्तार करती है, तो उस गिरफ्तारी को पुलिस हिरासत में रखा जाना कहा जाता है. इसका उद्देश्य उस व्यक्ति से अपराध के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करना, सबूतों से छेड़छाड़ करने से रोकना एवं गवाहों को प्रभावित करने से रोकना होता है. पुलिस को हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होता है. आरोपी को FIR की कॉपी भी देनी होती है. पुलिस के पास व्यक्ति की शारीरिक हिरासत होगी. उसे पुलिस स्टेशन में बंद किया जाएगा.
पुलिस को 24 घंटे के अंदर हिरासत में लिए गए व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास भेजना होता है. अब यह मजिस्ट्रेट के विवेक के अधीन है कि वे गिरफ्तार व्यक्ति को दोबारा से पुलिस हिरासत में भेजती है या उसे न्यायिक हिरासत में भेजती है. सीआरपीसी की धारा 167(2) में भी यही कहती है. अगर मजिस्ट्रेट आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजती है, तो उसे जेल भेजा जाएगा. अब पुलिस को आगे की पूछताछ के लिए मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी.
पुलिस ने आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया. अगर मजिस्ट्रेट चाहे तो 15 दिन की पुलिस हिरासत दे सकता है. कुछ अपवाद में, सीआरपीसी की धारा 167 (2) के अनुसार, मजिस्ट्रेट चाहे तो इस अवधि को बढ़ा भी सकता है. वहीं, सामान्यत: ज्यूडिशियल कस्टडी को 90 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है. अगर पुलिस इन 90 दिनों में चार्जशीट दायर नहीं करती हैं, तो अमूमन आरोपी को जमानत दे दी जाती है. कुछ मामले, जैसे हत्या और रेप के मामलों में चार्जशीट दायर करने के बाद भी जमानत आसानी से नहीं मिलती है, ताकि आरोपी मुकदमें की कार्यवाही को प्रभावित नहीं कर सके.
गिरफ्तारी या कस्टडी में व्यक्ति को अधिकार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 व्यक्ति के जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी देता है. गिरफ्तारी या हिरासत, इस अधिकार के चुनौती के तौर पर देखा जाता है.
गिरफ्तारी का कारण बताना होगा: किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को गिरफ्तारी का कारण बताना होगा. संविधान का अनुच्छेद 22 किसी व्यक्ति को मनमानी गिरफ्तारी से बचाता है, और कारण जानने का अधिकार देता है.
कानूनी सलाह लेने का अधिकार: गिरफ्तार हुए हर व्यक्ति को कानूनी सलाह लेने का अधिकार है. हर व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का अधिकार है.
मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना: गिरफ्तार हुए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है.
केंद्रीय या राज्य जेल मैनुअल न्यायिक हिरासत में रखे गए व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित है. जेलों का प्रबंधन राज्य सूची का विषय है. संविधान की सातवीं अनुसूची में इस बात का जिक्र है. जेल मैनुअल, कैदियों के आचरण को नियंत्रित करने के अलावा, यह भी सुनिश्चित करते हैं कि व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा की जाए.