हाल ही में उड़ीसा हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने ज्यूडिशियरी और पत्रकारिता की स्वतंत्रता को लेकर अहम टिप्पणी की है. बीजी वर्गीज मेमोरियल द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रिटायर जस्टिस ने कहा कि ज्यूडिशियरी पत्रकारों की सुरक्षा देने में हमेशा ही असंगतता दिखाई है, जिसके चलते पत्रकारों को आपराधिक मुकदमे और गिरफ्तारी से सुरक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होती है. जस्टिस मुरलीधर ने स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र प्रेस के बीच संबंध को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि दोनों एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं.
दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर आयोजित बीजी वेर्गीज मेमोरियल व्याख्यान में शामिल हुए थे. इस बार इस व्याख्यान का शीर्षक मीडिया, कोर्ट और अभिव्यक्ति की आजादी रखी गई थी. जस्टिस ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पत्रकारिता और कॉमेडी पर लग रहे प्रतिबंधों के उदाहरणों का भी जिक्र किया. सबसे पहले पूर्व चीफ जस्टिस ने पत्रकारों को सुरक्षा देने में बरती जा रही असंगतता को लेकर चिंता जताई. जस्टिस ने कहा, जब पत्रकार आपराधिक मुकदमे या गिरफ्तारी से राहत के लिए अदालत का रुख करते हैं, तो परिणाम असंगत होते हैं. एस मुरलीधर ने कहा, "कुछ पत्रकारों को गिरफ्तारी या जमानत से सुरक्षा मिली है, जबकि कुछ को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा है." उन्होंने इस असंगति को न्यायपालिका के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बताया.
मुरलीधर ने कहा कि इन्वेस्टिगेटिव जर्निलिज्म शक्तिशाली कॉर्पोरेट और राजनेताओं द्वारा शुरू की गई नागरिक और आपराधिक मानहानि की प्रक्रियाओं से खतरे में है. उन्होंने कहा, "ये बहादुर रिपोर्टर अब वकीलों के कार्यालयों और अदालतों के बीच सुरक्षा के लिए भागदौड़ कर रहे हैं." उन्होंने विशेष उदाहरणों का उल्लेख किया, जैसे एक स्टैंड-अप कॉमेडियन के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही, जो अदालत में विशेष उपचार पर एक व्यंग्यात्मक पोस्ट के लिए की गई थी. उन्होंने कहा कि यह कदम तब उठाया गया जब उस व्यक्ति ने एक कार्टून को रीट्वीट किया था, जो कार्यपालिका की न्यायपालिका पर प्रभुत्व का सुझाव देता था.
मुरलीधर ने सवाल किया, "देश जानना चाहता है कि आज के समय में, हमारे गणराज्य में, भारत में, स्वस्थ हास्य बोध को सहन करना इतना कठिन क्यों है?" यह सवाल उन्होंने मीडिया की स्वतंत्रता पर उठाया. उन्होंने 2023 में बीबीसी द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर एक डॉक्यूमेंट्री प्रसारित करने के बाद की गई कार्रवाई का भी उल्लेख किया. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आपातकालीन प्रावधानों का उपयोग करके डॉक्यूमेंट्री को हटाने का आदेश दिया. इसके बाद बीबीसी कार्यालयों पर आयकर सर्वेक्षण किए गए. मुरलीधर ने बताया कि तमिल पत्रिका अनंदा विकटन की वेबसाइट को एक कार्टून के कारण अवरुद्ध कर दिया गया था जिसमें पीएम मोदी को डोनाल्ड ट्रंप के बगल में बेड़ियों में दिखाया गया था. मद्रास हाई कोर्ट ने साइट को बहाल करने की अनुमति दी, लेकिन केवल तभी जब कार्टून को हटा दिया गया.
ओडिशा हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने जोर देकर कहा कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका और एक स्वतंत्र प्रेस एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं. उन्होंने कहा, "एक स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए एक स्वतंत्र प्रेस की आवश्यकता होती है, और प्रेस के लिए स्वतंत्र रहने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता होती है." पूर्व चीफ जस्टिस ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के दौरान इंटरनेट बैन का उदाहरण दिया. पूर्व जस्टिस ने बताया कि कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. हालांकि, अदालत ने याचिका पर कोई ठोस राहत नहीं दी. सुप्रीम कोर्ट ने कितने अनुपात में इंटरनेट शटडाउन होना चाहिए, इन सब मुद्दों को छोड़ दिया, महज एक समीक्षा समिति को सप्ताहिक रूप से प्रतिबंधों की जांच करने का निर्देश दिया. उन्होंने यह भी बताया कि न्यायाधीश स्वयं मीडिया का उपयोग करते हैं जब यह उनके लिए फायदेमंद होता है. जबकि अदालतें नियमित रूप से अपने प्रेस विज्ञप्तियों को जारी करने के लिए मीडिया का सहारा लेते हैं. लोक अदालत में मुकदमे के निपटारे, न्यायपालिका की उपलब्धियों को लोगों के बीच प्रसार करने के लिए. आते-जाते सीजेआई भी पत्रकारों को अपना इंटरव्यू देते हैं. हालांकि, जब मीडिया न्यायपालिका की आलोचना करता है, तो न्यायाधीश जल्दी से नाराज हो जाते हैं.
भारत में न्यायपालिका अक्सर आलोचना को सहन नहीं करती है. जस्टिस मुरालिधर ने बताया कि जब पत्रकारों ने न्यायपालिका की आलोचना की, तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़े. उदाहरण के लिए, अरुंधति रॉय को उनके नर्मदा निर्णय की आलोचना के लिए जेल भेजा गया. जस्टिस मुरलिधर ने पत्रकारों की सुरक्षा पर भी चिंता व्यक्त की. 2023 में पांच पत्रकारों की हत्या और 226 अन्य को निशाना बनाए जाने की घटनाएं हुईं. 2024 की विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 180 देशों में 159वां स्थान मिला. यह वृद्धि अन्य देशों की गिरावट के कारण हुई. हालांकि, केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री का इस पर प्रतिक्रिया देना कि यह सूचकांक निराधार है, चिंता का विषय है.
जस्टिस मुरालिधर ने प्रेस परिषद की स्थिति पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि यह संस्थान नैतिक अधिकार रखता है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता कम हो गई है. स्व-नियामक निकायों (Self-regulatory Syatem) के आदेश अक्सर अनदेखे किए जाते हैं, जिससे पत्रकारिता की गुणवत्ता प्रभावित होती है. जस्टिस मुरालिधर ने कहा कि पत्रकारिता और न्यायपालिका को एक-दूसरे की आलोचना को स्वीकार करना होगा. स्वतंत्र प्रेस और प्रभावी न्यायपालिका के बिना, लोकतंत्र की नींव कमजोर हो जाएगी. हमें एक ऐसा वातावरण बनाना होगा जहां स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दोनों का सम्मान हो.