'अदालत से त्रस्त होकर लोग आपस में ही सुलह करने को तैयार रहते हैं', सुप्रीम कोर्ट ने जजों को चुनौतियों से अवगत कराया
Lok Adalat के संपन्न होने पर आयोजित कार्यक्रम में CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोग न्यायिक प्रक्रिया से त्रस्त होकर किसी भी तरह का सेंटलमेंट करने को तैयार रहते हैं.
Written by Satyam Kumar|Updated : August 5, 2024 12:16 PM IST
सुप्रीम कोर्ट का 75वां वर्ष पूरा होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने लोक अदालत का आयोजन किया गया था. लोक अदालत के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. कार्यक्रम में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल आदि मौजूद रहें.
न्यायिक प्रक्रिया ही लोगों के लिए सजा बन रहीं: सीजेआई
पहले, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने अपना पक्ष रखा. सीजेआई ने लोक अदालत के सफलतापूर्वक पूरा होने पर अपने साथी जजों, बार के सदस्यों व सुप्रीम कोर्ट के अन्य अधिकारियों का आभार व्यक्त किया. भाषण के दौरान सीजेआई ने कानून व जजों के सामने उभरती चुनौतियों का भी जिक्र किया.
सीजेआई ने कहा,
"न्यायिक प्रक्रिया ही वादियों के लिए एक सजा बन जाती है जिसके कारण वे अक्सर अपने कानूनी अधिकारों से भी कम समझौते को स्वीकार करके मुकदमे को समाप्त करने के लिए समझौते करने को तैयार रहते हैं."
सीजेआई ने ऐसी ही एक मोटर दुर्घटना मामले का जिक्र किया जो विशेष लोक अदालत में निपटाए गए थे. उन्होंने बताया कि मामले में दावेदार को मुआवजा ज्यादा मिलनी थी लेकिन वह बेहद कम मुआवजे के लिए मामले को निपटाने के लिए तैयार था.
सीजेआई ने कहा,
"लोग किसी भी तरह के समझौते को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं क्योंकि वे सिस्टम से बाहर निकलना चाहते हैं."
सीजेआई ने अपने भाषण के पूरा करने के समय इस बात पर जोड़ दिया कि लोक अदालतों के माध्यम से न्याय देने की प्रक्रिया को संस्थागत बनाने की आवश्यकता है.
श्रीकृष्ण ने लगाई पहली लोक अदालत: केन्द्रीय कानून मंत्री मेघवाल
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए और उन्होंने कहा कि मध्यस्थता भारतीय संस्कृति का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने महाभारत में कौरवों और पांडवों के बीच मध्यस्थता करने का प्रयास किया था.
सुप्रीम कोर्ट की सूचना के अनुसार, विशेष लोक अदालत के लिए चुने गए मामलों की संख्या 14,045 थी. लोक अदालत बेंचों के समक्ष 4,883 मामले सूचीबद्ध किए गए और 920 मामलों का निपटारा किया गया.