सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण ने रविवार के दिन कहा कि देश में मानवाधिकार का मामला मुश्किल दौर से गुजर रहा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और निचली अदालतों में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं. जस्टिस श्रीकृष्ण ने लोकतांत्रिक अधिकार और धर्मनिरपेक्षता संरक्षण समिति (CPDRS) द्वारा आयोजित लोकतांत्रिक अधिकारों और धर्मनिरपेक्षता पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की.
जस्टिस श्रीकृष्ण ने देश में मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि न्याय में देरी न्याय से इनकार है. उन्होंने कहा कि असहमति और विरोध की आवाज उठाने का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है. जस्टिस श्रीकृष्ण ने कहा कि लोकतंत्र में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए, कानून का शासन कायम रहना चाहिए और धर्मनिरपेक्षता का अर्थ अन्य धार्मिक विश्वासों को भी सहन करने की क्षमता होना चाहिए. इस दौरान जस्टिस ने चिंता जताते हुए कहा कि भारत में अब ये सभी प्रमुख मूल्य खतरे में हैं.
पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि पिछले 10 वर्षों से देश में न्यायिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गंभीर खतरा है. उन्होंने कहा कि नागरिक समाज को लोगों के अधिकारों पर हो रहे इन हमलों से लड़ने के लिए आगे आना होगा. शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एके पटनायक ने हिरासत में मौत, फर्जी मुठभेड़ और जेलों में यातना के मुद्दों को रेखांकित करते हुए कहा कि देश में लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार संस्थाएं ही इनका सबसे अधिक उल्लंघन कर रही हैं. उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार संस्थाएं ही इनका सबसे अधिक उल्लंघन कर रही हैं. हिरासत में मौतें, फर्जी मुठभेड़ और जेल में यातनाएं बढ़ने की घटनाएं बढ़ी हैं. जस्टिस पटनायक ने कहा कि एक समतामूलक समाज के बजाय, संपत्ति कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हो रही है और जिस तरह से समाज विभाजित हो रहा है, मुझे लगा कि अब मुझे अपनी बात कहनी ही होगी.
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में मौलिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है. उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट कर दिया गया है और कठोर कानून लागू किये गये हैं. भूषण ने कहा कि निर्वाचन आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सत्तारूढ़ शासन के ‘पिछलग्गू’ बनने के जीवंत उदाहरण हैं. सीपीडीआरएस ने एक प्रेस विज्ञप्ति में दावा किया कि संयुक्त राष्ट्र मानव स्वतंत्रता सूचकांक 2023 में 165 देशों में से भारत को 109वें स्थान पर रखा गया है, तथा 2015 और 2023 के बीच इसके समग्र स्कोर में नौ प्रतिशत की गिरावट आई है, इसमें दावा किया गया है, आंकड़े एक अंधकारमय तस्वीर पेश करते हैं. अकेले 2021 में बलात्कार के 31,677 मामले दर्ज किए गए और 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4.45 लाख अपराध दर्ज किए गए। हिरासत में हिंसा बड़े पैमाने पर जारी है, एनएचआरसी ने 2022 के पहले नौ महीनों में पुलिस हिरासत में 147 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1,882 मौतें और 119 न्यायेतर हत्याएं दर्ज की हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि भारत में जेल में बंद 5.5 लाख कैदियों में से 77 प्रतिशत जमानत मिलने के बावजूद रिहा नहीं हो पा रहे हैं.
(खबर पीटीआई से है)