दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली (Justice Rekha Palli) ने शुक्रवार को अपने जज के रूप में अपने सात वर्षों के कार्यकाल के बाद पेशेवर जीवन को अलविदा कहा. विदाई समारोह में जस्टिस रेखा पल्ली ने अपने काम की अहमियत को जाहिर करते हुए कहा कि उनके लिए हर मामला सिर्फ एक फाइल नहीं था, बल्कि वह किसी के जीवन, करियर और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता था. जस्टिस रेखा पल्ली ने युवा वकीलों और भविष्य के जजों को सलाह दी कि सफलता का पीछा न करें, बल्कि उत्कृष्टता का पीछा करें और करियर और परिवार के बीच संतुलन बनाए रखें. मौके पर दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय (Chief Justice DK Upadhayay) ने उनके कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि जस्टिस का योगदान हमेशा याद रखा जाएगा, जिनके जीवन को उन्होंने अपने काम के माध्यम से छुआ है. बताते चलें कि जस्टिस रेखा पल्ली उन साहसी जजों में से है, जिन्होंने COVID-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान 40 दिनों तक चलने वाली सुनवाई में भाग लिया और दिल्ली के नागरिकों के लिए संसाधनों, जैसे ऑक्सीजन, के संवर्धन के पक्ष में कई निर्देश पारित किए.
जस्टिस पल्ली ने कहा कि हर मामला "सिर्फ एक फाइल" नहीं होता है. तकनीक में क्रांति के बावजूद, कोई भी मशीन कभी भी यह नहीं समझ सकती कि हर कानूनी मामले के पीछे एक मानव कहानी होती है. उन्होंने न्यायाधीश की भूमिका को केवल कानून लागू करने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसके प्रभाव को समझने की आवश्यकता पर भी जोर दिया. जस्टिस पल्ली ने युवा वकीलों और भविष्य के न्यायाधीशों को सलाह दी कि वे सफलता के पीछे नहीं, बल्कि उत्कृष्टता हासिल करने का प्रयास करें. उन्होंने कहा, "जो भी करें, उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ दें. सफलता का पीछा न करें, उत्कृष्टता का पीछा करें और सफलता आपके पीछे आएगी."
उन्होंने उन सभी महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन की वकालत की, जिन्हें मई 2006 से पहले वायु सेना और सेना में भर्ती किया गया था. 2010 में हाई कोर्ट ने यह निर्णय लिया कि उन्हें स्थायी कमीशन नहीं देना लिंग भेदभाव (Discrimination Based On Gender) के समान होगा. सितंबर 2024 में, जस्टिस रेखा पल्ली की अगुवाई वाली पीठ ने निर्णय दिया कि यदि कोई बल का सदस्य क्षेत्र में बारूद या विस्फोटकों के साथ काम नहीं कर रहा है, तो वह "सक्रिय ड्यूटी" पर नहीं होने के बावजूद अपनी स्टेटस को नहीं खोता है. एक अन्य मामले में, उनकी पीठ ने उन महिला उम्मीदवारों को, जो केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में नियुक्ति के लिए चिकित्सा परीक्षा के समय गर्भवती थीं, आवश्यक फिटनेस प्राप्त करने के लिए छह सप्ताह का समय बेहद कम बताया था. उन्होंने अधिकारियों से इस प्रावधान की समीक्षा करने का अनुरोध किया. जस्टिस पल्ली ने विदाई के मौके पर इस क्षण को याद करते हुए कहा कि सशस्त्र बलों के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करना केवल कानून के बारे में नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए भी था कि उन्हें गरिमा के साथ व्यवहार किया जाए. उन्होंने कहा, "मेरे लिए, ये केवल कानूनी विवाद नहीं थे, ये उन व्यक्तियों के लिए गहरे व्यक्तिगत संघर्ष थे."
मई 2023 में, जस्टिस पल्ली ने यह फैसला सुनाया कि विवाहेतर संबंधों को तलाक का आधार माना जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि एक विवाहित पुरुष की गोपनीयता की रक्षा करना सार्वजनिक हित में नहीं है. इसके साथ ही जस्टिस पल्ली ने एक महिला को 30 सप्ताह से अधिक गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी, क्योंकि भ्रूण एक दुर्लभ गुणसूत्र विकार से पीड़ित था.
9 मार्च, 1963 को जन्मी जस्टिस पल्ली ने 1986 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की डिग्री प्राप्त की. जुलाई 1986 में ही उन्होंने दिल्ली बार काउंसिल में एक वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाया और 1986 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की और मार्च 1989 तक वहां वकालत की. उसके बाद उन्होंने मार्च 1991 में अपने को सुप्रीम कोर्ट लॉयर के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाया. जस्टिस को अप्रैल 2015 में हाई कोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) के रूप में नामित किया गया था. 15 मई 2017 को जज के रूप में पदोन्नत होने से पहले, जस्टिस पल्ली ने सशस्त्र बलों के कानूनों में एक विशेषज्ञ वरिष्ठ वकील के रूप में कार्य किया.