बेल (Bail) का अर्थ है जेल (Jail) से बाहर आना. भारतीय कानून (Indian law) हर किसी को अपनी बात रखने का मौका देती है. बेल अधिकार और जेल अपवाद पहली बार सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजस्थान बनाम बालचंद केस (Rajasthan Versus Balchand Case) में कहा था. हालांकि ये कानून पहले से ही है. लेकिन लोगों के सामने या प्रकाश में इस केस से आया
केस राजस्थान राज्य बनाम बालचंद उर्फ बलिया से जुड़ा है. दिन 20 सितंबर, 1977 का था, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा जमानत (Bail) नियम और जेल(Jail) अपवाद है. केस की सुनवाई जस्टिस वी आर कृष्णाय्यर और जस्टिस एन. एल. ऊंटवालिया ने की थी. इस दौरान जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर (Justice VR Krishna Aiyyar) ने कहा था. नियमों की मानें तो हर आरोपी को जमानत (Bail) मिलने अधिकार है. सामान्य नियम बेल है, जेल नहीं (Basic rule is bail, not jail). साथ ही कुछ विशेष परिस्थितियों का जिक्र किया, जिनमें आरोपी को जमानत को रोकने का प्रावधान है.
कोर्ट जमानत से देने पहले कुछ बिन्दुओं पर विचार करती है. जैसे i) आरोपी अपराध को दोहरा सकता है या नहीं, ii) आरोपी देश छोड़ कर भाग सकता है या नहीं, iii) क्या आरोपी केस से जुड़े गवाहों को प्रभावित करने में सक्षम है या नहीं. कोर्ट इन बिंदुओं पर विचार कर फैसला देती है.
घटना 19-09-1955 के दोपहर का है. एक आदमी, बालचंद ने दूसरे आदमी, नाथमल की हत्या कर दिया. बालचंद ने नाथमल की दुकान में घुसकर खंजर उसका सिर, धड़ (शरीर) से अलग कर दिया. बालचंद, नाथमल के सिर को लेकर पास के सादड़ी थाने में सरेंड़र किया. केस में बालचंद पर आईपीसी की धारा 302, 326 और 380 के तहत मुकदमा हुआ. कोर्ट ने बालचंद को दोषी ठहकाते हुए धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई.
बालचंद ने अपने कृत्य को स्वयं ही स्वीकारा था. नाथमल की हत्या क्यों की, इस पर बालचंद ने बताया कि नाथमल ने उसकी पत्नी के साथ अवैध संबंध बनाया. जब उसे ये बात पता चली, तो आवेश में आकर ये कदम उठाया. पहले, बालचंद ने अपनी पत्नी के नाक काटे, उसके बाद नाथमल की हत्या की.
सेशन कोर्ट (Session Court) ने बालचंद को दोषी ठहराया और सजा सुनाई. बाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने बालचंद को बरी कर दिया. हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (Single Leave Petition) दायर की, जिसे स्वीकार कर लिया गया था. इस दौरान बालचंद को सुप्रीम कोर्ट के नियमों के आदेश XXI नियम 6 के तहत ट्रायल कोर्ट (Trial Court) के सामने सरेंडर करना पड़ा. और बाद में, सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए आवेदन किया, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने बालचंद को जमानत दे दी.
हर विवाद दो पक्षों के बीच होता है. अगर विवाद के दौरान हाथापाई होते-होते एक पक्ष को ज्यादा चोट लगने से उसकी की जान चली गई. अब मृतक के घर वाले इस घटना की जानकारी पुलिस को देते है. ये पहली बार पुलिस को सूचित करना एफआईआर (FIR) कहलाता है. इसके आधार पर पुलिस मुकदमा दर्ज करेगी. दोनों के बीच जो लड़ाई हुई, अगर वह हाथापाई तक रह जाती तो इसे जमानती(bailable) अपराध माना जाता. लेकिन किसी व्यक्ति की जान गई है, जो बेहद गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है, इस तरह के गंभीर अपराध को गैर-जमानती (Non-bailable) अपराध माना जाता है.