नई दिल्ली: भारतीय समाज, जो की जाति प्रथा से प्रभवित रहा है, में स्वतंत्रता के बाद भी ऊंची जाति और लोग नीची जाति के विभाजन से ग्रस्त रहा. समाज में ऊंची जाति के लोगो ने निम्नवर्ग को अपने से नीचा समझा और उन पर जुल्म भी किया. इस कुरीति की वजह से समाज दो वर्गों में बंट गया था. समाज को एक एवं सशक्त बनाने हेतु और समानता लाने के लिए संविधान में अनुच्छेद 17 को शामिल कर इस कुप्रथा को खत्म किया गया. चलिए जानते हैं क्या है अनुच्छेद 17 और इसका उल्लंघन करने वालों के साथ कानून में क्या है सजा का प्रावधान.
संविधान के अनुच्छेद 17 में छुआछूत को अस्पृश्यता कहा गया है.
अस्पृश्यता का अर्थ ऐसी वस्तुओं से लिया जाता है, जिनको स्पर्श करना वर्जित हो. हमारे देश में इस शब्द का अर्थ विशेषकर उन जातियों से दूर रहने के लिये किया जाता रहा जो निम्न जाति के हैं और जिनका मुख्य कार्य कूड़ा, मैला उठाना या सफाई करना है. इसलिए संविधान के अनुच्छेद 17 में यह स्पष्ट किया गया है कि “अस्पृश्यता" को खत्म किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है. “अस्पृश्यता" से उपजी किसी निर्योग्ता को लागू करना अपराध होगा, जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा.
आसान भाषा में कहा जाए तो “अस्पृश्यता" यानि छुआछूत को खत्म कर दिया गया है अगर कोई इसे बढ़ावा देगा या किसी के साथ “अस्पृश्यता" का कोई बर्ताव करेगा तब वह कानूनी रूप से दंडित किया जाएगा.
“अस्पृश्यता" एक अपराध है इसके बारे में अनुच्छेद 17 में बताया गया है लेकिन इसके नाम पर क्या- क्या कृत अपराध माना जाएगा और सजा क्या हो सकती है उसके बारे में सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम (Protection of Civil Rights Act), 1955 की धारा तीन,चार,पांच,छ: और सात में बताया गया है.
किसी सार्वजनिक पूजा-स्थान में प्रवेश करने से, एक ही धर्म के कुछ लोगों पर प्रतिबंध लगाना, बल्कि बाकियों के लिए खुला हो.
किसी सार्वजनिक पूजा-स्थान में पूजा या प्रार्थना या कोई धार्मिक सेवा अथवा किसी तालाब, कुएं, जल स्रोत (जल-सारणी, नदी या झील में स्नान या उसके जल का उपयोग या ऐसे तालाब, जल-सरणी, नदी या झील के किसी घाट पर स्नान) का इस्तेमाल के लिए बाकियों पर कोई प्रतिबंध नहीं बल्कि कुछ लोगों के लिए रोक हो.
ऐसा करना अपराध माना जाएगा, जिसकी कम से कम सजा एक महीने की और ज्यादा से ज्यादा छ: महीने की सजा मिल सकती है. इतना ही नहीं कम से कम एक सौ रुपये का जुर्माना और ज्यादा से ज्यादा 500 रुपये का जुर्माना भीदेना पड़ सकता है.
आभूषणों और अलंकारों का उपयोग करना;
इस धारा के तहत बताए गए अपराध के लिए वही सजा है जो धारा 3 में बताया गया है.
इस धारा के तहत बताए गए अपराध के लिए वही सजा है जो धारा 3 में बताया गया है.
अगर कोई व्यापारी अपने ग्राहकों में अस्पृश्यता के आधार पर भेदभाव करते हुए किसी को माल और अपनी सेवा देता है लेकिन किसी को नहीं देता है तो वह दोषी माना जाएगा और धारा 3 में निहित सजा का पात्र होगा.