नई दिल्ली : साल 2018 में आपसी सहमति से समलैंगिक यौन संबंध जिसे अप्राकृतिक यौन संबंध कहा जाता है, बनाए जाने को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आईपीसी (IPC-Indian Penal Code) की धारा 377 की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इससे संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया था, जिसके बाद भारत में समलैंगिक संबंध अपराध नहीं रहें. आइए इसे गहराई से समझते हैं कि आखिर क्यों इसे अपराध माना जाता था और क्या ये कानून पूरी तरह से समाप्त हो गया है.
अप्राकृतिक यौन अपराध को समझने के लिए सबसे पहले हमे अप्राकृतिक यौन संबंध को समझना होगा. अप्राकृतिक यौन संबंध यानि ऐसा शारीरिक संबंध जो प्रकृति के खिलाफ हो. सदियों से हमारे समाज में लोगों ने बस विपरित लिंग वाले जोड़ों के शारीरिक रिश्तों को ही देखा है, समझा है और उससे अपनाया है, क्योंकि लोगों को लगता था कि आमतौर पर केवल पुरुष महिलाओं की तरफ और महिलाएं पुरुषों की तरफ आकर्षित होती हैं.
देश का कानून भी यहीं मानता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ समाज का वो छुपा हुआ हिस्सा भी सामने आने लगा हैं जो काफी समय से लोक लाज की डर से दबा हुआ था. जिसे LGBTQ ((lesbian, gay, bisexual, transgender, and questioning) समुदाय के नाम से जाना जाता है. जो लोग इस समुदाय का हिस्सा हैं उन्हें समलैंगिकों (Homosexual) के रूप में जाना जाता है, जबकि अन्य को विषमलैंगिकों (heterosexual) के रूप में जाना जाता है. कुछ लोग आपसी सहमति से ये संबंध बनाते हैं वही कुछ लोग जबरन संबंध बनाने की कोशिश करते हैं.
पहले जब दो समलैंगिक व्यक्तियों के बीच शारीरिक संबंध होता था, तो इसे अप्राकृतिक यौन अपराध माना जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह साफ कर दिया था कि इससे संबंधित धारा के अनुसार कब अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध माना जाएगा और कब नहीं.
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार "IPC की धारा 377 में कुछ पहलुओं के तहत बच्चों से यौनाचार, पशुओं से यौन संबंध स्थापित करना अथवा असहमति से (ज़बरदस्ती) समान लिंग वाले व्यक्ति के साथ यौन संबंध स्थापित करना अपराध माना गया गया है और वो अपराध ही रहेगा. " यानि धारा के कुछ पहलू ज्यों के त्यों बने रहेंगे.
इस कानून का इतिहास 19वीं शताब्दी का है, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था भारत का आधुनिक आपराधिक कानून 1861 में लॉर्ड मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, जिन्होंने 1860 के भारतीय दंड संहिता का Draft तैयार किया था. जैसा कि भारतीय दंड संहिता अंग्रेजों द्वारा तैयार की गई थी, इसमें उस समय के अंग्रेजी कानून के समान कई प्रावधान थे. अगर कोई कार्य था जिसे ब्रिटिश कानूनों द्वारा अवैध घोषित किया गया था, तो उसी कार्य को आईपीसी में भी अपराध घोषित किया गया था.
ऐसे ही कानून का एक उदाहरण आईपीसी की धारा 377 है. जिसमें अप्राकृतिक यौन अपराध के बारे में और सजा के बारे में बताया गया है. आईपीसी की धारा 377 में ऐसा था कि अपनी मर्जी से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना भी अपराध था, जिसके कारण ऐसे लोग समाज में डर से जी रहे थे और खुलकर सामने नहीं आते थे.
इसी को देखते हुए लोगों की मांग होने लगी इसमें बदलाव करने के लिए ताकि जो लोग अपनी मर्जी से ये संबंध बनाना चाहते हैं वो बना सकें. यही कारण है कि इसमें बदलाव किए गएम.
पहले धारा 377 जो कि Unnatural offences के बारे में बताता है, जिसमें समलैंगिकता को अपराध माना जाता था चाहे यह संबंध सहमति से बनाई जाए या असहमति से. यानि जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता है, तो वह अपराधी माना जाएगा.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में इसे अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था. अब दो वयस्क पुरुषों अथवा दो वयस्क महिलाओं द्वारा आपसी सहमति से आपस में यौन संबंध स्थापित करना इस धारा के तहत अपराध नहीं कहा जा सकेगा.
कोई पुरुष तथा महिला अप्राकृतिक यौनाचार (एनल और ओरल सेक्स) भी करते हैं, तो वह भी अब 'परमिसिबल' है. वहीं अगर कोई जबरन किसी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है किसी समान लिंग वाले व्यक्ति के साथ या बच्चों के साथ, पशुओं से यौन संबंध स्थापित करता है तो उसे अपराध ही माना जाएगा".
ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर अपराधी एक अवधी के लिए कारावास की सजा दी जा सकती है जिसकी अवधी को 10 साल हो सकती है साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
यौन अपराध आईपीसी की धारा 375 से लेकर धारा 377 तक में आते हैं.
IPC की धारा 375 “बलात्कार” और उससे संबंधित विभिन्न प्रावधानों को परिभाषित करती है.
IPC की धारा 376 विभिन्न परिस्थितियों में बलात्कार के अपराध के लिए दी जाने वाली सजा के बारे में बताती है.
IPC की धारा 377 एकमात्र धारा है जो अप्राकृतिक यौन अपराधों से संबंधित है.