नई दिल्ली: महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार (मार्च ६) को बंबई उच्च न्यायालय को सूचित किया कि वह एक सप्ताह के भीतर एक सरकारी संकल्प जारी करेगी जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को रोज़गार और शिक्षा मंचों पर आवेदन करने के लिए तीसरी खिड़की प्रदान की जाएगी. एडवोकेट जनरल डॉ बीरेंद्र सराफ ने कोर्ट को यह भी बताया कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम 2020, के अनुरूप एक सप्ताह के भीतर, राज्य द्वारा एक समिति का भी गठन किया जाएगा.
आपको बता दें, महाराष्ट्र बनाम आर्य पुजारी और अन्य केस में, ट्रांसजेंडर आर्य पुजारी ने पुलिस कांस्टेबल की भर्ती का विज्ञापन जारी होने के बाद भर्ती के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने की कोशिश की थी, परन्तु उस फॉर्म में तीसरे जेंडर का ऑप्शन नहीं होने के कारण वे फॉर्म भरने में अक्षम रहें. इस मामले में उन्होंने महाराष्ट्र एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल (MAT) में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि ट्रांसजेंडर फॉर्म भरने में सक्षम हैं, उन्हें भर्ती होने का समरूप मौका मिलना चाहिए. ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार को ट्रांसजेंडरों के लिए शारीरिक मानक और टेस्ट का एक मानदंड तय करने का भी निर्देश दिया था.
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 को लागू करने के लिए 2020 के केंद्रीय नियम जारी किए गए थे. एक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को रोजगार के देने के उद्देश्यों से इन नियम का पालन किया जाना चाहिए. आइए जानते हैं, कौन है ट्रांसजेंडर और कैसे यह अधिनियम उनके मानव अधिकार की सुरक्षा करता है.
ट्रांसजेंडर ऐसे सामाजिक-सांस्कृतिक समूह है जो भारत में कई रूपों में जाने जाते हैं जैसे- हिजड़ा या किन्नर. ये उपसमूह अत्यधिक भेदभाव और उत्पीड़न से निपटते हैं जिनमें मौखिक, शारीरिक, यौन शोषण और हिंसा शामिल है, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है. वे अक्सर विभिन्न असमान आचरणों जैसे गैरकानूनी कैद, शैक्षिक और व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश और सेवाओं से इनकार, संपत्ति की विरासत में भाग लेने से इनकार, शैक्षिक, पेशेवर, स्वास्थ्य-देखभाल और पारिवारिक सेटिंग में उत्पीड़न का शिकार बन जाते हैं. ऐसे ही लोगो के अधिकारों की सुरक्षा हेतु केंद्रीय अधिनियम 2019 में जारी किया गया था।
ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 19 जुलाई, 2019 को लोकसभा में तत्कालीन सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्री थावरचंद गहलोत द्वारा पेश किया गया था. इस बिल को 5 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई थी.
यह अधिनियम ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिभाषित करता है और स्वतः अनुभव की जाने वाली लिंग पहचान का अधिकार प्रदत्त करता है. इस अधिनियम का उद्देश्य ट्रांसजेंडर होने का पहचान-पत्र जारी कराना, किसी भी स्थापन में नियोजन, भर्ती, प्रोन्नति और अन्य संबंधित मुद्दों के विषय में सुनिश्चित करता है की उन्हें विभेद का सामना न करना पड़े, प्रत्येक स्थापन में शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना, और विधेयक के उपबंधों का उल्लंघन करने के संबंध में दंड का प्रावधान सुनिश्चित करना है.
अधिनियम के तहत, ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह व्यक्ति है जिसका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता. इसमें ट्रांस-पुरुष और ट्रांस-स्त्री, मध्यलिंगी (intersex) विभिन्नता वाले व्यक्ति, जेंडर क्वीर (queer) आते हैं. इसमें सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे किन्नर, हिजड़ा आदि भी शामिल हैं.
इस अधिनियम के अनुसार, Intersex भिन्नताओं वाले व्यक्ति वो होते हैं जो जन्म के समय अपनी मुख्य यौन विशेषताओं, बाहरी जननांगों, chromosomes या hormones में पुरुष या महिला शरीर के आदर्श मानकों से भिन्नता का प्रदर्शन करता हैं.
इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं में से एक है, ट्रांसजेंडर व्यक्ति के प्रति भेदभाव पर प्रतिबंध. यह अधिनियम शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा आदि मामलों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव को रोकता है व ऐसा करना अपराध माना जाता है.
यह अधिनियम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति भेदभाव को प्रतिबंधित करता है. इस अधिनियम के तहत के किसी भी संबंध में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को सेवा प्रदान करने से इनकार करना या अनुचित व्यवहार करना-जैसे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध उत्पादों, सुविधाओं और अवसरों तक पहुंच और उसका उपभोग, कहीं आने-जाने पर, किसी प्रॉपर्टी में निवास करने, स्वामित्व का अधिकार, सार्वजनिक या निजी पद को ग्रहण करने का अवसर आदि मामलों में भेदभाव शामिल है.
प्रत्येक ट्रांसजेंडर को किसी प्रॉपर्टी में निवास करने, से किराये पर लेने, स्वामित्व हासिल करने या अन्यथा उसे कब्जे में लेने का अधिकार प्राप्त है. इसके अलावा ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने परिवार में रहने और उसमें शामिल होने का भी अधिकार है परन्तु अगर किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति का परिवार उसकी देखभाल करने में अक्षम है तो उस व्यक्ति को अदालत के आदेश से पुनर्वास केंद्र में भेजा जा सकता है.
कोई सरकारी या निजी संस्था रोजगार से जुड़े मामलों, जैसे भर्ती, पदोन्नति इत्यादि, में किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति से भेदभाव नहीं कर सकती अर्थात यदि कोई ट्रांसजेंडर नौकरी के लिए सक्षम है तो ट्रांसजेंडर होने के कारण उसे रोजगार से वंचित न रखा जाए और समान मौका दिया जाना चाहिए.
इस अधिनियम के अनुसार, अगर संस्था में 100 से अधिक व्यक्ति कार्य करते हैं, तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अधिनियम के तहत मिलने वाली शिकायतों से निपटने के लिए एक शिकायत निवारण अधिकारी को निर्दिष्ट करें.
सरकार द्वारा वित्त पोषित या मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान बिना भेदभाव के ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को दूसरों के साथ समावेशी शिक्षा, खेल एवं मनोरंजन की सुविधाएं प्रदान करेंगे.
अधिनियम के अनुसार, सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए कदम उठाएगी जिसमें अलग HIV Surveillance Centre, Sex Reassignment Surgery इत्यादि शामिल है. सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को संबोधित करने के लिए चिकित्सा पाठ्यक्रम की समीक्षा करेगी और उन्हें समग्र चिकित्सा बीमा योजनाएं भी प्रदान करेगी.
एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन कर सकता है कि ट्रांसजेंडर के रूप में उसकी Identity Certificate जारी किया जाए. अगर उस व्यक्ति ने पुरुष या महिला के तौर पर अपना लिंग परिवर्तन करने के लिए सर्जरी कराई है तो ही वो संशोधित सर्टिफिकेट हासिल कर सकता है.
इस अधिनियम के तहत, संबंधित सरकार, समाज में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पूर्ण समावेश और भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगी. वह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बचाव एवं पुनर्वास तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं स्वरोजगार के लिए कदम उठाएगी. अथवा ट्रांसजेंडर संवेदी योजनाओं का सृजन करेगी और सांस्कृतिक क्रियाकलापों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा देगी.
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से बलपूर्वक या बंधुआ मजदूरी करवाना या भीख मंगवाना, उन्हें सार्वजनिक स्थान का प्रयोग करने से रोकना, उन्हें परिवार, गांव इत्यादि में निवास करने से रोकना, और उनका शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक उत्पीड़न करना, अपराध की श्रेणी में शामिल है.
इन अपराधों के लिए सजा छह महीने से दो वर्ष के बीच की हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ सकता है.
राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर परिषद (NCTP), की स्थापना 2020 में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत की गई थी. इस परिषद के निम्नलिखित सदस्य होते हैं-
- केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री (अध्यक्ष),
- सामाजिक न्याय राज्य मंत्री (सह अध्यक्ष),
- सामाजिक न्याय मंत्रालय के सचिव,
- स्वास्थ्य, गृह मामलों, आवास, मानव संसाधन विकास से संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधि,
- नीति आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रतिनिधि,
- राज्य सरकार के प्रतिनिधि,
- ट्रांसजेंडर समुदाय के पांच सदस्य, और
- गैर सरकारी संगठनों के पांच विशेषज्ञ
यह परिषद भारत सरकार का वैधानिक निकाय है, जो ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों के संबंध में नीतियां, विधान और योजनाएं बनाने एवं उनका निरीक्षण करने के लिए केंद्र सरकार को सलाह देता है. यह ट्रांसजेंडर लोगों की शिकायतों का निवारण भी करवाती है.