नई दिल्ली: भारतीय संविधान ने सबको आजादी से जीने का अधिकार दिया है, कोई भी किसी के साथ भी किसी तरह का जोर जबरदस्ती नहीं कर सकता और ना ही डरा धमका कर अपनी बात मनवा सकता है. अगर कोई ऐसा करते हुए दोषी पाया गया तो कानून उसे दंडित करता है. ऐसे जबरदस्ती से संबंधित कई अपराध है जिसका जिक्र भारतीय दंड संहिता में किया गया है. उन्ही में से एक है जबरन किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाना. इसी तरह का एक अपराध है Forced Anal Sex. यह एक प्रकार की सेक्सुअल क्रिया है जो अगर किसी के साथ जोर जबरदस्ती से किया जाए तो वो अपराध की श्रेणी में आता है. Forced Anal Sex एक ऐसी सेक्सुअल क्रिया है जो प्रकृति के खिलाफ है. कानूनी रूप से यह एक जघन्य अपराध है जिसके लिए अपराधी को भारी सजा दी जाती है.
चूकि कानून किसी के साथ जोर जबरदस्ती करके शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत नहीं देता है, आईपीसी की धारा 377 में ऐसे ही अपराध के बारे में बताया गया है साथ ही इसमें दोषी पाये जाने पर क्या सजा दी जाएगी उसका भी जिक्र किया गया है.
इसके तहत उन अपराधों के बारे में बताया गया है जो प्रकृति के खिलाफ है. धारा के अनुसार "प्रकृति विरुद्ध अपराध यानि अगर कोई व्यक्ति किसी पुरुष, महिला या जीव जंतु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध जा कर स्वेच्छया इन्द्रियभोग करेगा वह अपराधी माना जाएगा. ऐसा करने वाले को कानून कड़ी सजा देती है."
इस धारा के तहत जिस अपराध का जिक्र किया गया है उसके लिए अपराधी के दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है या फिर किसी भी तरह के कारावास की सजा से दंडित किया जा सकता है जिसकी अवधि दस साल हो सकती है या जुर्माना लगाया जा सकता है या फिर दोनों ही सजा दी जा सकती है.
यहां स्पष्ट कर दें की इस धारा में बताए गए अपराध के लिए आवश्यक इन्द्रियभोग गठित करने के लिए प्रवेश (penetration) पर्याप्त है.
कलकत्ता हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा (Section) 377 (अप्राकृतिक अपराध) के तहत जबरन अधूरा ऐनल सेक्स भी अपराध की श्रेणी में आएगा.
मामला ये था कि पीड़िता ने आरोप लगाया था कि एक डॉक्टर ने उसे जबरन कपड़े उतारे और लगभग दो घंटे तक यौन उत्पीड़न किया, जो इस मामले के दो आरोपियों में से एक था. शिकायतकर्ता ने आगे दावा किया कि दोनों आरोपियों ने उसे इस घटना के बारे में दूसरों को न बताने की धमकी दी थी.
इस मामले पर अदालत सुनवाई कर रही थी तब जस्टिस शम्पा दत्त (पॉल) ने आगे कहा कि अधूरा गुदा मैथुन भी अपराध की श्रेणी में आता है. इसमें आईपीसी की धारा 377 लागू होती है. आरोपों की गंभीरता पर टिप्पणी करते हुए, न्यायमूर्ति दत्त ने टिप्पणी की कि घटना, अगर यह सच है, तो भयानक थी, और मानसिक रूप से टूटने का कारण बन सकती है और एक व्यक्ति को जीवन भर के लिए जख्मी कर सकती है.