नई दिल्ली: कानून नागरिकों की रक्षा के लिए और कानून तोड़ने वालों को दंडित करने के लिए बनाया गया है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब कोई किसी पर झूठा आरोप लगाता है और उसके खिलाफ मुकदमा शुरू कर देता है तो उसके बाद क्या होता है?
अक्सर लोग सिर्फ बदला लेने के लिए झूठे आरोप लगाते हैं और किसी के खिलाफ झूठा मामला शुरू कर देते हैं. यह कानून का पूरी तरह से दुरुपयोग है जो कुछ लोगो द्वारा किया जाता है, लेकिन कानून में ऐसे प्रावधान हैं जिनका इस्तेमाल ऐसे लोगों के खिलाफ किया जा सकता है.
टॉर्ट कानून (Tort Law) के अनुसार, उस व्यक्ति के खिलाफ झूठा मामला चलाने के लिए, दुर्भावनापूर्ण अभियोजन (Malicious Prosecution) का मामला शुरू किया जा सकता है.
एक मात्र आरोप या मामला जो शुरू किया गया है, वह दुर्भावनापूर्ण अभियोजन को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, इसके लिए किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए कुछ आवश्यकताओं का होना बहुत आवश्यक है.
पहली आवश्यकता यह है कि दुर्भावनापूर्ण मुकदमा चलाने की मांग करने वाले वादी पर झूठे आपराधिक आरोपों में अभियुक्त द्वारा मुकदमा चलाया गया होना चाहिए. वादी को यह साबित करने की जरूरत है कि उसके खिलाफ मुकदमा चलाया गया था जिसे प्रतिवादी ने शुरू किया था.
इसका मतलब यह है कि प्रतिवादी के पास झूठे आरोप लगाने का कोई उचित कारण नहीं था और यह इलज़ाम उसने जानबूझकर लगाया और गलती के कारण नहीं.
यह साबित करना भी महत्वपूर्ण है कि जब प्रतिवादी ने झूठे आरोप लगाए तो उसमें द्वेष था और यह कुछ हासिल करने के लिए एक बेईमान मकसद से किया गया था. वादी को यह साबित करना होगा कि प्रतिवादी ने कानून का इस्तेमाल अपने न्याय के उद्देश्य को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि अन्य चीजों के लिए किया जो कानून के उद्देश्य के विफल है.
साथ ही यह भी आवश्यक है कि अभियोगी के विरुद्ध झूठा मुकदमा चलाया गया हो, न्यायाधीश द्वारा निलम्बित किया गया हो, जहाँ वह दोषी नहीं पाया गया हो.यदि वह दोषी पाया गया और दोषी पाया गया तो इसे दुर्भावनापूर्ण अभियोजन नहीं माना जाएगा और आरोपों को सही माना जाएगा.
उस मामले में उनका एकमात्र उपाय सजा के खिलाफ अपील करना है। यदि अपील का परिणाम उसके पक्ष में होता है तो वह द्वेषपूर्ण अभियोजन के लिए मुकदमा कर सकता है.
वादी के लिए साबित करने वाली आखिरी बात यह है कि उसके खिलाफ झूठे मुकदमे के कारण उसे नुकसान हुआ है. कानून के अनुसार नुकसान तीन प्रकार का हो सकता है, या तो इससे समाज में उसकी प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा पर असर पड़ा है या उसे खतरे में डालता है, जहां उसे अपनी जान गंवानी पड़ सकती थी या झूठे मुकदमे के कारण उसे आवश्यक धन खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा, ताकि वह खुद को उस अपराध से अपने आपको निर्दोष साबित करवाए. इसमें कोर्ट फीस, वकील की फीस और ट्रांसपोर्टेशन फीस का खर्च शामिल हो सकता है.
यदि वादी यह साबित करने में सफल होने के बाद कि वह प्रतिवादी द्वारा दुर्भावनापूर्ण रूप से मुकदमा चलाया गया था, तब वह अदालत से मुआवजे की मांग कर सकता था, जो प्रतिवादी द्वारा दिया जाएगा.
हालांकि अदालत ने उस व्यक्ति के लिए दुर्भावनापूर्ण मुकदमा चलाने के लिए मुआवजे की मांग करने के लिए उस तारीख से एक वर्ष की समय सीमा निर्धारित की है जिस दिन उसे बरी किया गया था. एक साल के बाद वह मुआवजे की मांग नहीं कर सकता.
उसे हुए नुकसान के आधार पर वह मुआवजे की मांग कर सकता है और अदालत द्वारा मांगे गए मुआवजे का मूल्यांकन करने के बाद उसे मुआवजा दिया जाएगा.