नई दिल्ली: एक वैध अनुबंध का गठन करने के लिए, अनुबंध को स्वैच्छिक (Voluntary) और पार्टियों की स्वतंत्र सहमति (Free Consent) के साथ अनिवार्य होना जरुरी है. भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, (Indian Contract Act, 1872) की धारा 14 के अनुसार, “सहमति को स्वतंत्र केवल तब कहा जाता है जब यह उत्पीड़न (Coercion), असम्यक् असर (Undue Influence), धोखाधड़ी, गलत बयानी या गलती के कारण या उनसे प्रेरित नहीं हुई हो.”
यदि अनुबंध के संबंध में सहमति स्वतंत्र और वास्तविक नहीं है, तो कोई वैध अनुबंध अस्तित्व में नहीं आता है. उत्पीड़न (Coercion) और असम्यक् असर (Undue Influence), ये दो ऐसे तरीके हैं जिनमें किसी व्यक्ति की सहमति गलत तरीके से प्राप्त की जाती है.
आइए जानते हैं इन दोनों शब्दों का मतलब और क्या है इनके बीच में अंतर.
भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 15 में उत्पीड़न (Coercion) को परिभाषित किया गया है. इस धारा के अनुसार यदि कोई व्यक्ति एक अनुबंध/समझौते के सन्दर्भ में, किसी अन्य व्यक्ति की सहमति प्राप्त करने के इरादे से, भारतीय दंड संहिता द्वारा निषिद्ध किसी भी कार्य को करता है या करने की धमकी देता है, या किसी भी संपत्ति को गैरकानूनी हिरासत में रखता है, या हिरासत में लेने की धमकी देता है, तो ऐसी सहमति को उत्पीड़न से प्राप्त की गई सहमति कहा जाता है.
अतः धारा 15 के अनुसार, सहमति को उत्पीड़न (Coercion) से प्राप्त किया हुआ तब माना जाता है, जब यह निम्नलिखित में से किसी कार्य द्वारा प्राप्त की गई हो:
· भारतीय दंड संहिता द्वारा निषिद्ध कोई अपराध करना या करने की धमकी देना; या
· किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति को गैरकानूनी रूप से रोकना या बंद करने की धमकी देना.
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 16 के अनुसार, एक अनुबंध को असम्यक असर (Undue Influence) से उत्पन्न कहा जाता है “जहां पार्टियों के बीच संबंध ऐसे होते हैं कि एक पक्ष दूसरे की इच्छा पर हावी होने की स्थिति में होता है और वह उस प्रभाव का उपयोग करता है ताकि दूसरे पर अनुचित लाभ प्राप्त किया जा सके.”
परिभाषा के अनुसार, असम्यक असर (Undue Influence) से प्रेरित अनुबंध में निम्नलिखित दो तत्व पाए जाते हैं:
उत्पीड़न और असम्यक असर, दोनों के मामले में सहमति को स्वतंत्र नहीं माना जाता है, और अनुबंध को पीड़ित पक्ष के निर्णय पर रद्द किया जा सकता है. हालांकि, दोनों के बीच अंतर के कुछ बिंदु हैं जैसे:
1. उत्पीड़न, किसी व्यक्ति को अनुबंध में प्रवेश करने के लिए मजबूर करने के लिए बल या धमकी का उपयोग करना है. जबकि, असम्यक असर से तात्पर्य है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसकी अपनी स्वतंत्र इच्छा के विपरीत कार्य करने के लिए प्रेरित करता है और वह ऐसा अपने अत्यधिक प्रभाव के चलते करता है.
2. उत्पीड़न के मामले में, पार्टियों के बीच कोई करीबी रिश्ते का होना जरूरी नहीं है, लेकिन असम्यक असर के मामले में, पक्षों के बीच किसी प्रकार का संबंध अनिवार्य रूप से होना चाहिए ताकि अनुचित प्रभाव डाला जा सके जैसे, स्वामी और नौकर, वकील और मुवक्किल, आदि.
3. उत्पीड़न में शारीरिक बल या धमकी का उपयोग शामिल होता है. जबकि असम्यक असर में नैतिक दबाव (Moral Pressure) का उपयोग शामिल है.
4. उत्पीड़न किसी तीसरे पक्ष के द्वारा भी की जा सकती है और वहीं, दूसरी ओर, अनुबंध के एक पक्ष द्वारा ही असम्यक् असर का उपयोग किया जाता है और प्रभाव डालने में कोई तीसरा पक्ष शामिल नहीं होता है.
इस प्रकार से उत्पीड़न (Coercion) और असम्यक् असर (Undue Influence) के मामलों में दी गई सहमति को स्वतंत्र नहीं माना जा सकता है. इन मामलों में जिस पार्टी की सहमति उपरोक्त तरीके से प्राप्त की गई थी, उसकी पसंद पर न्यायालय द्वारा अनुबंध/समझौते को अमान्य घोषित किया जाता है.