Leader of Opposition: हाल ही में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए है. बीजेपी ने 240 सीटें, तो कांग्रेस ने 99 सीटें लाकर अपनी-अपनी कोशिशों में सफल हुई है. माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी है. प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर कैबिनेट में शामिल हुए मंत्रियों ने भी अपने पद की शपथ ली है. ऐसे में चर्चा स्पीकर और नेता विपक्ष या प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) के चयन पर सबकी नजरें टिकी हैं. स्पीकर पद के चयन और उनकी शक्तियों की चर्चा फिर कभी, लेकिन इस लेख में हम नेता विपक्ष के बारे में बचाने जा रहे हैं, उनकी शक्तियां, नेता प्रतिपक्ष की दावेदारी से जुड़े नियम और जरूरत की सभी जानकारी....
सबसे पहले नेता प्रतिपक्ष की चर्चा क्यों? लोकसभा चुनाव के बाद संसद के पहले सत्र की शुरूआत होनेवाली है. शुरूआती सत्र में सबसे पहले स्पीकर का चयन होता है, उसके बाद नेता प्रतिपक्ष का चुनाव होता है. पिछले दो लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रहा. संसद की वेबसाइट पर आखिरी नेता प्रतिपक्ष की सूची में सुषमा स्वराज का नाम है, जो यूपीए-2 (2009 से 2014) के वक्त नेता विपक्ष की भूमिका निभाई थी.
पिछले दो लोकसभा सत्र में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रहा, क्योंकि किसी भी राजनीतिक पार्टी ने 54 सीटें नहीं जीत पाई थी. इस बार कांग्रेस को 99 सीटें मिली है, तो कांग्रेस का दावा नेता प्रतिपक्ष के लिए सबसे मजबूत है. अगर किसी कारणवश कांग्रेस इस पद को स्वीकार नहीं करती है, तो इस पद के लिए किसी अन्य पार्टी के पास 54 सीटें नहीं है.
नेता प्रतिपक्ष को लेकर कांग्रेस पार्टी में 'राहुल गांधी' के नाम की चर्चा है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने भी राहुल गांधी के नाम की अनुशंसा की है. लेकिन राहुल गांधी की सहमति को लेकर अभी कोई खबर नहीं सामने नहीं आई है.
ED, CBI,CVC, लोकलेखा समिति के चयन में नेता विपक्ष भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है. नेता प्रतिपक्ष के बिना मुख्य चुनाव आयुक्त, ED और CBI प्रमुख के चयन में बड़ी भूमिका निभाते हैं. नेता प्रतिपक्ष लोक लेखा समिति का चेयरमैन भी होता है. लोक लेखा कमेटी सरकार के फाइनेंशियल अकाउंट्स की जांच करती है यानि वे पैसे जो सरकार को संसद की ओर से खर्च करने के लिए दिए जाते हैं.
नेता प्रतिपक्ष को दिल्ली में एक फर्निश्ड बंग्ला, ड्राइवर सहित गाड़ी तथा देश-विदेश में कामकाज के लिए मुफ्त रेल व हवाई यात्रा की सुविधा दी जाती है. नेता प्रतिपक्ष को सरकारी अस्पताल में मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं दी जाती है.
देश का पहला चुनाव. साल 1952. कांग्रेस के स्वर्णिम दौड़ की शुरूआत. कांग्रेस को 364 सीटें मिली थी. सीपीआई (एम) को 16 सीटें. पहले सदन में जीवी मावलंकर पहले लोकसभा स्पीकर बने, जिन्होंने सीपीआई(एम) के किसी नेता को प्रतिपक्ष चुनने से इंकार कर दिया. देश के पहले स्पीकर ने नियम बनाया कि लोकसभा प्रतिपक्ष बनने के लिए किसी पार्टी को कुल सीटों की संख्या का दस प्रतिशत होना चाहिए. यानि अभी के दौड़ में 54 सीटें. इस चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिली है, जिससे नेता प्रतिपक्ष सीट पर उसके दावे को मजबूत करती है.
मावलंकर का ये नियम किसी गजट या लिखित तौर पर जारी नहीं किया गया, लेकिन ये नियम लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा सहित अन्य निकायों में लागू किया जाता है.