Final Report: कोई भी आरोपी जब पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है तो पुलिस अधिकारी का यह दायित्व है कि वे अभियुक्त को 24 घंटे के भीतर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें, उसके बाद न्यायालय से मामले कि जाँच पड़ताल करने के लिए एक निश्चित समय कि मांग करें और फिर अन्वेषण के समाप्ति के पश्चात पुलिस न्यायालय को अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश करें. आखिर क्या है ये अंतिम रिपोर्ट और किस प्रावधान के तहत ये पेश की जाती है, आइये विस्तार से जानते हैं...
दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 2(r) पुलिस रिपोर्ट के बारे में बात करती है, जिसके अनुसार एक पुलिस अधिकारी द्वारा एक मजिस्ट्रेट को धारा 173(2) के तहत रिपोर्ट भेजी जाती है. रिपोर्ट धारा 173 की उप-धारा (2) के नियम (a) से (g) में बताये गए विवरण के अनुसार राज्य सरकार द्वारा निर्धारित तरीके से होनी चाहिए. इस धारा के तहत पेश पुलिस रिपोर्ट को अंतिम रिपोर्ट कहा जाता है. यदि यह रिपोर्ट किसी आरोपी व्यक्ति द्वारा अपराध के प्रयास के बारे में है, तो उस रिपोर्ट को आमतौर पर चार्जशीट या चालान कहा जाता है.
अंतिम रिपोर्ट (Final Report) जैसे शब्द का इस्तेमाल सीआरपीसी में नहीं किया जाता है लेकिन पुलिस अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को अंतिम रिपोर्ट कहा जाता है. जांच में कई चरण होते हैं जो अंततः पुलिस द्वारा कवर की गई और अन्वेषण के दौरान एकत्र की गई सामग्री या साक्ष्य पर एक राय के निर्माण में समाप्त होते है. इसके बाद आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के लिए मामला बनता है और धारा 169 के तहत क्लोजर रिपोर्ट या धारा 170 के तहत चार्जशीट जमा करनी होती है.
पुलिस को सीआरपीसी की धारा 169 से सीआरपीसी की धारा 173 तक बताई गईं कुछ प्रक्रियाओं का पालन करना जरुरी होता है. पुलिस रिपोर्ट को एक तरह की चार्जशीट या चालान के रूप में पेश करना पुलिस द्वारा इस तरह की जांच का अंतिम परिणाम है.
ये धारा साक्ष्य की कमी के मामलों से संबंधित है. इस धारा के तहत जब अपराधी के विरुद्ध कोई साक्ष्य नहीं मिलता है तो पुलिस न्यायालय में क्लोजर रिपोर्ट लगाती है. क्लोजर रिपोर्ट एक रिपोर्ट है जो पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा मजिस्ट्रेट या संबंधित अदालत को सौंपी जाती है, जिसमें कहा गया है कि आरोपी के खिलाफ उचित जांच के बाद, उसे कथित अपराध से जोड़ने के लिए कोई सबूत या संदेह का उचित आधार नहीं मिला और यदि अभियुक्त हिरासत में है, तो उसे रिपोर्ट दर्ज करने के बाद कुछ शर्तों पर रिहा किया जाएगा; जैसे कि एक बांड निष्पादित करना, एक ज़मानत प्रदान करना, बुलाए जाने पर मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होना आदि.
धारा 170 उन मामलों के बारे में बात करती है जहां अभियुक्त को मुकदमे के लिए भेज दिया जाता है. पुलिस द्वारा बनाई गई चार्जशीट उस निजी व्यक्ति की शिकायत से संबंधित है और उसका उल्लेख करती है जिसपर आपराधिक कार्रवाई हुई है.
कुछ अतिरिक्त साक्ष्य प्राप्त होने पर पुलिस अधिकारी द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करना किसी अपराध के संबंध में आगे की जांच को नहीं रोकेगा.
धारा 173 बताती है कि जहां तक अपराध के विषय में जांच का संबंध है, पुलिस अधिकारी को रिपोर्ट जमा करने के बाद प्राप्त सभी अतिरिक्त साक्ष्य पेश करने की आवश्यकता है, यदि वे पुराने सबूतों के बावजूद कोई भी नए साक्ष्य प्राप्त करने का प्रबंधन करते हैं तो उन साक्ष्यों को भी न्यायालय के समक्ष पेश करना होता है.
धारा 173(8) के बाद आगे की जांच के आदेश में मजिस्ट्रेट को उस आरोपी को सुनने की जरूरत नहीं है जिसके बारे में अदालत में धारा 173(2) के तहत जांच रिपोर्ट दायर की गई है. हालांकि, अगर किसी गवाह को संज्ञान लेने के बाद अभियुक्त बनाया जाता है, तो उसे मजिस्ट्रेट द्वारा सुना जाना चाहिए. अगर धारा 167(b) के तहत आगे की जांच के आदेश दिए गए हैं जबकि जांच पूरी करने के लिए कोई समय सीमा नहीं बनाई गई है, तब यह अमान्य नहीं होगा.
किसी भी मजिस्ट्रेट को इस धारा के तहत आरोपी को पुलिस हिरासत में रखने की शक्ति नहीं दी जाती है जब तक कि आरोपी को पहली बार व्यक्तिगत रूप से उसके सामने पेश नहीं किया जाता है और बाद में हर बार पुलिस हिरासत में रहने पर उसे पेश किया जाता है.
धारा 157 के तहत पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी द्वारा मजिस्ट्रेट को एक प्रारंभिक रिपोर्ट पेश करने की आवश्यकता होती है, इसमें अन्वेषण जारी रखना है या नहीं इसके विषय में पुलिस न्यायालय कि आज्ञा लेती है. धारा 168 एक अधीनस्थ (subordinate) पुलिस अधिकारी द्वारा थाने के प्रभारी अधिकारी को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने की आवश्यकता की बात करती है और इसके साथ ही धारा 173 के तहत जांच पूरी होते ही मजिस्ट्रेट को पुलिस अधिकारी की अंतिम रिपोर्ट देने की आवश्यकता होती है.