नई दिल्ली: पुलिस का काम केवल अपराध होने के बाद दोषी को गिरफ्तार करना ही नहीं है बल्कि अपराध होने से पहले भी रोकना है. कई बार पुलिस को किसी अपराध के हो जाने के बाद खबर मिलती है और कई बार पुलिस को अपराध होने से पहले ही उसके बारे में जानकारी मिल जाती है.
जब भी पुलिस किसी को अरेस्ट करने जाती है तो लोग पूछते हैं कि वारंट कहां है फिल्मों में भी हम सब यही देखते आ रहें हैं कि पुलिस अगर बिना वारंट के किसी को अरेस्ट करने जाती है तो पुलिस को खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है. इसलिए लोगों के मन में ऐसी धारणा बन गई है कि पुलिस किसी को वारंट के बिना अरेस्ट नहीं कर सकती है लेकिन ऐसा नहीं है. पुलिस को अगर लगा तो वो अपराधी को बिना अरेस्ट वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है.
हमारे कानून में अपराध को दो भागों में बांटा गया है. पहला संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) और दूसरा गैर संज्ञेय अपराध. संज्ञेय अपराध के तहत आरोपित को पुलिस वारंट के बिना ही अरेस्ट कर सकती है जबकि गैर संज्ञेय अपराध (Non-cognizable offence) में गिरफ्तारी के लिए वारंट की आवश्यकता पड़ती है. चलिए जानते हैं कि पुलिस बिना वारंट के किसी अपराधी को कब और कैसे अरेस्ट कर सकती है.
पुलिस लोगों की सुरक्षा के लिए हर वो कदम उठा सकती है जो आमजन की सुरक्षा के लिए जरुरी लगता है. इसलिए पुलिस को कई तरह के कानूनी अधिकार भी दिए गए हैं. CrPC की धारा 149 के अनुसार हर पुलिस अधिकारी को यह अधिकार है कि वो किसी भी संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा सकता है.
धारा 150 के तहत अगर किसी पुलिस अधिकारी को कोई ऐसी सूचना मिली की कुछ लोग मिलकर किसी संज्ञेय अपराध को अंजाम देने की योजना बना रहे हैं तो ऐसे में हर पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वो उस अधिकारी को इसकी सूचना दे जिसके अधीनस्थ वो कार्यरत है, जो उस संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए जरुरी कदम उठा सकता है.
धारा 151 में दो उपधाराएं दी गई है जिसमें बताया गया है कि अगर किसी पुलिस अधिकारी को किसी संज्ञेय अपराध के होने की सूचना मिलती है तो वो कैसे दोषी को अरेस्ट कर सकता है.
उपधारा- 1 के तहत अगर किसी पुलिस अधिकारी को किसी संज्ञेय अपराध को अंजाम देने की योजना बना रहे लोगों के बारे में पता चलता है और अधिकारी को लगता है कि अरेस्ट किए बिना अपराध को होने से नहीं रोका जा सकता या फिर वारंट मिलने से पहले अपराध हो जाएगा, तो ऐसे में वो अधिकारी बिना मजिस्ट्रेट के आदेश या वारंट के योजना बना रहे लोगों को अरेस्ट कर सकता है.
उपधारा - 2 पुलिस गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रख सकती. लेकिन अगर कोई प्रावधान/कानून या मजिस्ट्रेट हिरासत में रखने की अवधि को बढ़ाने का आदेश देता है तो यह अवधि बढ़ सकती है. इतना ही नहीं पुलिस के पास ऐसे गिरफ्तार लोगों को जमानत पर छोड़ने का अधिकार नहीं होता.
धारा 151 के तहत गिरफ्तारी की निम्नलिखित शर्तें बताई गई है:
1.कोई भी पुलिस किसी को तब ही अरेस्ट कर सकती है जब कोई संज्ञेय अपराध को अंजाम देने की कोई योजना बना रहा हो.
2.पुलिस को उसके योजना के बारे में जानकारी होनी चाहिए.
3. वह व्यक्ति जो संज्ञेय अपराध की योजना में शामिल था उसे ही गिरफ्तार किया जा सकता है.
4.पुलिस को यह विश्वास होना चाहिए कि गिरफ्तारी से ही ऐसे अपराधों को होने से रोका जा सकता है.