नई दिल्ली: अपराधी किसी भी अपराध को अंजाम देने से पहले एक योजना तैयार करते हैं. फिर अपराध को अंजाम देते हैं, लेकिन कुछ लोग जो अपराध करना नहीं चाहते लेकिन किसी कारणवश खुद को बचाने के लिए उनसे कुछ ऐसा कृत्य हो जाता है जो कानूनी रूप से गलत है. जैसे आप पर किसी ने अचानक हमला कर दिया और आपने बचाव में किसी धारदार हथियार से पलटवार किया जिससे हमलावर की मौत हो गई तो ऐसे में कानून क्या करेगा - सजा देगा या माफ करेगा, क्योंकि आपका कृत्य भी एक अपराध की श्रेणी में शामिल हो जाता है.
ऐसे किसी भी मामले की सुनवाई करते वक्त कानून यह देखता है कि आपके द्वारा किए गए काम में क्या अपराध के वो तत्व मौजूद हैं या नहीं जो कानून में निर्धारित किए गए हैं. चलिए जानते हैं कि आखिर वो अपराध के तत्व क्या हैं.
अपराध शब्द अंग्रेजी भाषा Offence का हिन्दी रूपांतरण है. यह लैटिन भाषा Offender से मिल कर बना है. कानूनी भाषा मे अपराध का अर्थ है कानून के खिलाफ किया गया कोई कार्य या कानून का उल्लंघन. कोई भी ऐसा काम जो कानून के खिलाफ है जिसके लिए आप कानूनी रूप से दंडित किए जा सकते हैं. तो वह एक अपराध अपराध
अपराध एक ऐसा काम है जो न केवल किसी व्यक्ति के लिए बल्कि पूरे समाज या समुदाय, राज्य या देश के लिए खतरनाक होता है. कहा जाता है कि हर अपराध कानून का उल्लंघन करता है लेकिन कानून का हर उल्लंघन अपराध नहीं होता.
1. मानव/ व्यक्ति (Person)
किसी भी अपराध के लिए आवश्यक है कि अपराध किसी व्यक्ति ने किया है. ऐसा होने पर ही व्यक्ति को कानून दोषी ठहराएगा. भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) 1860 की धारा 11 के अनुसार,व्यक्ति शब्द के अंतर्गत कोई भी कंपनी संगम या व्यक्ति निकाय आता है, चाहे वह निगमित (Incorporated) हो या ना हो.
2. मेन्स रिया (Mens Rea) या दोषी इरादे
दूसरा तत्व प्रसिद्ध मैक्सिमम एक्टस नॉन-फेसिट रेम निसी मेन्स सिट रिया से लिया गया है. यह एक कहावत है जिसे दो भागों में विभाजित किया गया है;
मेन्स री और एक्टस रीस इनमें ज्यादा अंतर नहीं है क्योंकि ये दोनों अपराध स्थापित करने के लिए आवश्यक कारक हैं. दोनों के बीच केवल इतना ही अंतर है कि मनःस्थिति एक मानसिक तत्व है और एक्टस रीस एक भौतिक तत्व है.
1.मेन्स रिया (दोषी दिमाग): पहले तत्व से तात्पर्य है किसी भी व्यक्ति को दोषी और उसके द्वारा किए गए कार्य को तब तक अपराध नहीं माना जाएगा जब तक कि उसका मन दोषी ना है यानि उसकी गंदी मंशा होनी चाहिए.
2.एक्टस रियस (दोषी कृत्य): दूसरा तत्व है एक्टस रियस जिसका अर्थ है किसी व्यक्ति को तब तक दोषी नहीं माना जा सकता है जब तक कि उसने अपने इरादे या गलत मंशा को पूरा करने के लिए कोई कार्य़ ना किया हो.
इसका इस्तेमाल आपराधिक गतिविधि का वर्णन करने के लिए किया जाना वाला यह एक लैटिन शब्द है. यह आमतौर पर एक आपराधिक गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जाता है. यह एक शारीरिक गतिविधि के बारे में बताता है जिसके कारण किसी अन्य व्यक्ति को परेशानी होती है या संपत्ति को कोई नुकसान पहुंचाता है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, दोषी या गलत इरादे के कारण, कुछ अति या अवैध चूक होना चाहिए.
जब भी कोई अपराध होता है तो उसमें कोई ना कोई क्षति जरुर होती है जैसे - जान की क्षति, माल की क्षति या मानहानि, आदि. अगर किसी व्यक्ति के द्वारा गलत इरादे के साथ किए गए किसी कार्य से किसी का किसी भी तरह का कोई भी नुकसान होता है या चोट पहुंचती है तो ही उसे अपराध माना भारतीय
भारतीय दंड संहिता की धारा 44 में चोट को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति के शरीर, मन, प्रतिष्ठा या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के रूप से परिभाषित किया गया है.