नई दिल्ली: अभी हाल ही में, हरियाणा राज्य के गुरुग्राम जिले की पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है जो कथित तौर पर वायुसेना स्टेशन में प्रवेश करने के लिए फर्जी पहचान पत्र का उपयोग कर रहा था. यह कोई अकेली घटना नहीं है, ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जिनमें लोग नकली पहचान पत्र को असली के रूप में इस्तेमाल करते हैं लेकिन, आज हम आपको बता दें कि ऐसा करना एक अपराध है और यदि आप ऐसा कोई कार्य करते हैं तो आपको सख्त कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज़ किया जा सकता है.
इस तरह के मामलों में इस संहिता की कई धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज़ किया जाता है. आइए जानते हैं कि ऐसे मामलों में आम तौर पर किन-किन धाराओं को लागू किया जाता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 198 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी प्रमाण पत्र को यह जानते हुए कि यह किसी भौतिक तथ्य के संबंध में गलत/झूठा है, को सही साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करता है तो ऐसे व्यक्ति को उसी तरह दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने कोई गलत साक्ष्य दिया हो.
यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding) में ऐसे झूठे प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करता है तो उसे अधिकतम 7 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
वहीं, किसी अन्य तरह की कार्यवाही में ऐसे झूठे प्रमाण पत्र को इस्तेमाल करने का दोषी पाए जाने पर उसे अधिकतम 3 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
धारा 198 के अंतर्गत परिभाषित अपराध एक जमानती और असंज्ञेय अपराध है. इस तरह के मामलों में अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. इस तरह के अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है.
जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को सच्चे के रूप में उपयोग करना है अपराध
भारतीय दंड संहिता की धारा 471 के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति बेईमानी या धोखेबाजी करने के उद्देश्य से किसी जाली दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का उपयोग उस तरीके से करता है, जैसे कि वह
दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड जाली न होकर असली हो, तो ऐसी स्तिथि में उस व्यक्ति को उसी सजा से दंडित किया जाएगा, जैसे उसने वह जाली दस्तावेज़ स्वयं बनाया हो.
इससे तात्पर्य यह है कि यदि कोई धारा 471 के अंतर्गत दोषी पाया जाता है तो उसे धारा 465 के तहत 2 साल के कारावास या जुर्माने या दोनों की सज़ा हो सकती है.
धारा 471 के अंतर्गत परिभाषित अपराध एक जमानती और संज्ञेय अपराध है. इस तरह के मामलों में अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है. इस तरह के अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता गया