नई दिल्ली: हाल ही में एक मामला सामने आया है जिसमें कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने कश्मीर विवि के पीआरओ और दो अन्य को सेवा से बर्खास्त कर दिया. यह कार्यवाही राज्य सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311(2) का इस्तेमाल करते हुए कश्मीर विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) सहित तीन अधिकारियों/कर्मचारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के अनुसार, किसी भी सिविल सेवक (Civil Servant) को ऐसी जाँच के बाद ही पदच्युत किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा, अथवा रैंक में कम किया जाएगा जिसमें उसे अपने विरुद्ध आरोपों की सूचना दी गई है तथा उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान किया गया है।
संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध, यह अनुच्छेद भारत के राष्ट्रपति या राज्यपाल को किसी भी सरकारी कर्मचारी को सुनवाई का अवसर दिए बिना सेवा से बर्खास्त करने का अधिकार देता है, लेकिन तब, जब राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में उनकी संलिप्तता से देश की अखंडता को खतरा हो।
सोमवार को संविधान के इस प्रावधान के तहत, जम्मू-कश्मीर सरकार ने पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ सक्रिय रूप से काम करने, आतंकवादियों को रसद प्रदान करने, आतंकवादियों की विचारधारा का प्रचार करने, धन जुटाने और आगे बढ़ाने के लिए कश्मीर विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) फहीम असलम, राजस्व विभाग के अधिकारी मुरावथ हुसैन मीर और पुलिस कांस्टेबल अर्शीद अहमद थोकर की सेवाओं को समाप्त कर दिया।
सूत्रों ने न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस को बताया कि "सरकार ने कड़ी जांच के बाद तीन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने के लिए भारत के संविधान की धारा 311 (2) (सी) का इस्तेमाल किया है, जिससे स्पष्ट रूप से पता चला है कि वे पाकिस्तान आईएसआई और आतंकवादी संगठनों की ओर से काम कर रहे थे।"
अनुच्छेद 311 (2) के अनुसार, किसी भी सिविल सेवक को ऐसी जाँच के बाद ही बर्खास्त किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा अथवा उसके रैंक को कम किया जाएगा जिसमें उसे अपने विरुद्ध आरोपों की सूचना दी गई है तथा उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त (Reasonable) अवसर प्रदान किया गया है।
संघ की सिविल सेवा या अखिल भारतीय सेवाओं और किसी राज्य की सिविल सेवा और संघ या किसी राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाले व्यक्तियों को यह संरक्षण प्रदान किया गया है। अनुच्छेद 311 के तहत दिये गए सुरक्षात्मक उपाय केवल सिविल सेवकों, यानी लोक सेवक अधिकारियों पर लागू होते हैं। वे रक्षाकर्मियों के लिये उपलब्ध नहीं हैं।
अनुच्छेद 311 (2)(a) के तहत जहाँ एक व्यक्ति की उसके आचरण के आधार पर बर्खास्तगी या हटाना या रैंक में कमी की जाती है जिसके कारण उसे आपराधिक आरोप में दोषी ठहराया गया है या इसका खंड 2 (b) कहता है कि जहाँ किसी व्यक्ति को बर्खास्त करने या हटाने या उसके रैंक को कम करने के लिये अधिकृत (Authorise) प्राधिकारी संतुष्ट है कि किसी कारण से उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाना है, ऐसी जाँच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है और साथ ही इसका खंड 2 (c) के अनुसार जहाँ राष्ट्रपति या राज्यपाल, जैसा भी मामला हो, संतुष्ट हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में ऐसी जाँच करना उचित नहीं है।
इन प्रावधानों के तहत बर्खास्त किये गए सरकारी कर्मचारी राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण या केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) या न्यायालयों जैसे न्यायाधिकरणों में जा सकते हैं।
संविधान का भाग XIV (14) संघ और राज्य के अधीन सेवाओं से संबंधित है
अनुच्छेद 309 के तहत संसद और राज्य विधायिका को क्रमशः संघ या किसी राज्य के मामलों के संबंध में सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों को विनियमित करने का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 310 में बताया गया है कि संविधान द्वारा प्रदान किये गए प्रावधानों को छोड़कर, संघ में एक सिविल सेवक राष्ट्रपति की इच्छा से काम करता है और राज्य के अधीन एक सिविल सेवक उस राज्य के राज्यपाल की इच्छा पर काम करता है।
लेकिन सरकार की यह शक्ति निरपेक्ष (Absolute) नहीं है। अनुच्छेद 311 किसी अधिकारी की पदच्युति (Dismissal), पदच्युति में कमी के लिये राष्ट्रपति या राज्यपाल की पूर्ण शक्ति पर कुछ प्रतिबंध भी लगाता है।
इस अनुच्छेद के तहत उस व्यक्ति को उसके खिलाफ दर्ज आरोपों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। उसे अपने तर्क के पक्ष को स्पष्ट करने का अवसर भी दिया जाना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति देश की सुरक्षा या हित के खिलाफ किसी भी कार्य में शामिल पाया जाता है, तो उसके विरुद्ध Official Secret Act, 1923 के तहत कार्यवाही किये जानें का प्रावधान है |
ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट भारत का जासूसी-विरोधी एक्ट के दायरे में कोई भी व्यक्ति सरकार द्वारा प्रतिबंधित क्षेत्र में न जा सकता है, न ही उसकी जांच कर सकता है और न उसके आसपास से गुजर सकता है. इस अधिनियम के तहत यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, अर्थात यह पाया जाता है, कि वह व्यक्ति भारत में या भारत के बाहर रह रहे विदेशी एजेंट के संपर्क में है तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनें का प्रावधान है | इस कानून के मुताबिक, सरकार की किसी भी गोपनीयता को जनता के बीच उजागर नहीं किया जा सकता।
Official Secret Act के सेक्शन 3 के प्रावधन के अंतर्गत जासूसी करने और सेक्शन 5 के अंतर्गत गोपनीय जानकारी, पासवर्ड, स्केच, योजनाओं आदि को सार्वजनिक करने पर सजा दिए जानें का प्रावधान है। सबसे खास बात यह है कि दस्तावेजों के संबंध में कार्रवाई को लेकर संबंधित मंत्रालय ओएसए (OSA) नहीं बल्कि अपने 1994 के दिशा निर्देशों का पालन करता है।