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Explainer: सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का फैसला रखा बरकरार, तो लोग शाह बानो 2.0 बताने लगे

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 धर्मनिरपेक्ष तौर पर सभी धर्मों पर लागू होगी जिसके तहत मुस्लिम महिलाओं को अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का पूरा अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की तुलना साल 1985 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा दिए फैसले से की जा रही है. कुछ तो इसे शाह बानो 2.0 भी कह रहे हैं.

Written by Satyam Kumar |Published : July 12, 2024 3:34 PM IST

Alimony To Divorced Muslim Woman: हाल ही में (10 जुलाई 2024) सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के फैसले को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 और सीआरपीसी की धारा 125 के बीच तुलनात्मक गौर की. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि सीआरपीसी की धारा 125 धर्मनिरपेक्ष तौर पर सभी धर्मों पर लागू होगी जिसके तहत मुस्लिम महिलाओं को अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का पूरा अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की तुलना साल 1985 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ द्वारा दिए फैसले से की जा रही है. लोग इसे शाह बानो 2.0 भी कह रहे हैं. आइये इस मामले से जुड़ी सभी कानूनी पहुलओं को जानते हैं..

शाह बानो 2.0: फैमिली कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर

मुस्लिम व्यक्ति ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 का हवाला देते हुए कहा कि उसे अपनी तलाकशुदा पत्नी को इद्दत पीरियड (90 दिन, तीन महीने) के बाद गुजारा भत्ता देने की जरूरत नहीं है.

मुस्लिम व्यक्ति ने अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने में आपत्ति जताई. गुजारा भत्ता की मांग करते हुए तलाकशुदा पत्नी फैमिली कोर्ट पहुंची. फैमिली कोर्ट ने उसकी मांग को स्वीकार करते हुए, पति को बीस हजार रूपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. अब व्यक्ति ने इस फैसले को तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी. तेलंगाना हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा लेकिन गुजारा भत्ते की राशि दस हजार कर दी. अब सुप्रीम कोर्ट ने  तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.

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आगे बढ़ने से पहले इद्दत को समझें:  इद्दत एक इस्लामी परंपरा है. पति से तलाक या उसके इंतकाल होने के मामले में मुस्लिम महिलाओं को इद्दत निभाना पड़ता है. इद्दत की अवधि तलाक मालमे में 3 महीने और तलाक के मामले में 4 महीने की होती है.

CrPC की धारा 125 धर्मनिरपेक्ष, सभी धर्मों पर होगा लागू: SC

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक मुस्लिम व्यक्ति की याचिका खारिज की है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर हावी नहीं होगा.

अदालत ने आगे कहा, 

सीआरपीसी की धारा 125 सभी गैर-मुस्लिमओं पर भी समान रूप से लागू होता है.

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक से अवैध तौर मिले तलाक मामलों में भी मुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के तहत लागू होगी.

नए कानून में सीआरपीसी की धारा 125 कहां?

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में तलाकशुदा महिला, बच्चों और माता-पिता को गुजारा भत्ता देने का प्रावधान है. वहीं, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 144 में आई है. सीआरपीसी की धारा 125 कहती है जब कोई पुरूष अपनी पत्नी, बच्चे या माता-पिता से अलग होता है तो उसे उन्हे गुजारा भत्ता देना होगा. गुजारा भत्ता की राशि मजिस्ट्रेट तय करेगी.

जब पहली बार SC ने मुस्लिम महिलाों को गुजारा भत्ता देने को कहा

अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम केस: साल 1985 में जब सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम मामले में भी एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. उस समय भी, संवैधानिक पीठ ने उस समय सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था कि सीआरपीसी की धारा 125 एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान (धर्मनिरपेक्ष का अर्थ किसी धर्म समुदाय विशेष से ऊपर) है जो मुस्लिम महिलाओं पर भी समान रूप से लागू होता है. हालांकि, इस फैसले को समाज के कुछ वर्गों ने आपत्ति जताते हुए इसे धार्मिक, व्यक्तिगत कानूनों पर हमले के रूप में बताया. परिणामस्वरूप मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 को लागू करके फैसले को निष्प्रभावी करने का प्रयास किया गया, जिसने मुस्लिम महिलाओं के तलाक के 90 दिनों (इद्दत अवधि) के बाद रखरखाव के अधिकार (गुजारा भत्ता) को प्रतिबंधित कर दिया.

2001 में मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 की संवैधानिक वैधता को डेनियल लतीफी और अन्य बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई. न्यायालय ने विशेष कानून की वैधता को बरकरार रखा. हालांकि, अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून मुस्लिम व्यक्ति को तलाकशुदा पत्नी का गुजारा भत्ता देने को इद्दत की अवधि तक सीमित नहीं रखती है.

अब सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल समद बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य में भी मुस्लिम व्यक्ति को अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने का ऐतिहासिक निर्णय दिया है.

Case Title: मोहम्मद अब्दुल समद बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य