नई दिल्ली: अक्सर दंगे के दौरान ट्रेन जलाने की या किसी अन्य पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने का मामले सामने आते रहता है. सार्वजनिक संपत्ति आम जनता के पैसों से आम जनता की सुविधा के लिए होते हैं. अगर कोई उन्हें नुकसान पहुंचाएगा तो वह कानूनी रूप से दंडित किया जाएगा. इस अपराध और सजा के बारे में लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम (Prevention of Damage to Public Property Act), 1984 में बताया गया है.
इस अधिनियम के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को जानबूझकर नुकसान पहुंचाता है तो वह दंड का भागीदार होगा.
इस एक्ट के तहत लोक संपत्तियों में निम्नलिखित संपत्तियों को शामिल किया गया है;
किसी भी सार्वजनिक संपत्ति के साथ तोड़ फोड़ करना या किसी भी तरह से हानि पहुंचाना एक अपराध है. अगर कोई व्यक्ति इस तरह के कृत्य को करते हुए पाया जाता है तो वह दोष सिद्ध होने पर पांच साल के कारावास या जुर्माना की सजा से दंडित किया जा सकता है. जानकारी के लिए आपको बता दें कि अगर अदालत को लगा तो वह दोषी को दोनों ही सजा से दंडित कर सकता है.
दंगों में होने वाले सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी अपना रुख स्पष्ट कर चुका है. जानकारी के लिए आपको बता दें कि जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रों पर कथित पुलिस ज्यादती की याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमत होते हुए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने दंगों और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि "हम जानते हैं कि दंगे कैसे होते हैं, हमने बहुत दंगे देखे हैं, इसे पहले बंद कर दें, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया जा रहा है, अगर विरोध प्रदर्शन ऐसे ही चले और सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट किया गया तो हम कुछ नहीं करेंगे."