नई दिल्ली: रेप या गैंगरेप, हमारे देश का खौफनाक, शर्मनाक और असहनीय तकलीफ देने वाला जघन्य अपराध है. इस अपराध की बू ने समाज के हर कोने को प्रदूषित किया है. केवल सार्वजनिक जगह ही नहीं बल्कि कईयों का घर भी इस अपराध से अछूता नहीं रहा.
कुछ पीड़िता इस अपराध के खिलाफ आवाज उठा पाती हैं, कुछ समाज की डर से खुद को ही खत्म कर लेती है, तो कुछ सहम कर अपने साथ हुए बर्बरता को अपने अंदर ही समेट लेती हैं. जिसका कारण है डर और जागरूकता में कमी.
हमारे देश के कानून में बलात्कार के अलग-अलग स्वरुप को परिभाषित किया गया है,उन्ही में से एक है गैंगरेप. गैंगरेप को लेकर हमारा कानून बहुत सख्त है. जिसके बारे में हर किसी को जानकारी होनी चाहिए.
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code - IPC), 1860 की धारा 376D में गैंगरेप के दोषियों के खिलाफ कठोर सजा का प्रावधान किया गया है.
इस धारा में स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि किसी भी महिला के साथ अगर एक से अधिक लोग, एक ही मकसद को पूरा करने के लिए कुछ ऐसा करते हैं जिससे बलात्संग (बलात्कार) को अंजाम दिया जाता है, तब यही माना जाएगा कि इसमें शामिल हर व्यक्ति ने इस अपराध को अंजाम दिया है.
इस अपराध के लिए दोषियों को कठोर कारावास की सजा दी जाएगी जिसकी अवधि 20 साल से कम नहीं होगी. वहीं ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक जीवन के उम्रभर के लिए जेल में रहने (नेचुरल लाइफ तक के लिए जेल) की सजा का प्रावधान किया गया है.
गैंग रेप से संबंधित अनगिनत मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. अब तक का सबसे चर्चित मामला रहा है निर्भया गैंग रेप कांड.
निर्भया कांड, इस केस ने देश में दुष्कर्म की परिभाषा तक बदल दी. पहले सिर्फ सेक्सुअल पेनिट्रेशन (Sexual Penetration) को ही रेप माना जाता था. लेकिन इस कांड के बाद गलत तरीके से छेड़छाड़ और अन्य तरीके के यौन शोषण को भी रेप की धाराओं में शामिल किया गया.
निर्भया कांड के बाद ही दुष्कर्म के गंभीर मामलो की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए होने लगी है. इसमें फैसला आने में अपेक्षाकृत कम समय लगने लगा.
निर्भया कांड के चलते बने दबाव के कारण ही सरकार ने आनन फानन में IPC की धाराओं में बड़े बदलाव करते हुए दुष्कर्म से जुड़े मामलों में फांसी तक का प्रावधान किया.
IPC की धारा 181 और 182 में बदलाव करते हुए दुष्कर्म से जुड़े नियमों को बेहद सख्त करते हुए फांसी तक का प्रावधान किया गया.
सरकार ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बड़ा बदलाव करते हुए जघन्य अपराध के लिए नाबालिग को भी व्यस्क माना जाने लगा. 22 दिसंबर 2015 को राज्यसभा में संशोधित जुवेनाइल जस्टिस बिल पास किया गया. जिसमें यह प्रावधान किया गया कि 16 साल या उससे अधिक उम्र के किशोर को जघन्य अपराध करने पर एक वयस्क मानकर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी और व्यस्क के तौर पर सामान्य अदालत में मुकदमा चलाया जाएगा.