नई दिल्ली: आपराधिक मामलों में पीड़ित और अभियुक्त दोनों को ये अधिकार है कि वे अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं, इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता के तहत पीड़ित और अभियुक्त को ये सुविधा प्रदान कि गई है कि अगर उन्हें निचली अदालत से कोई राहत प्राप्त नहीं हुई है तो वे ऊपरी अदालत में अपना पक्ष रख सकते हैं और वहां से उनको राहत मिलने की पूरी सम्भावना होती है।
ऊपरी अदालतों में अपना पक्ष रखने के लिए मामले के पक्षकारों को अपील का सहारा लेना होता है। आखिर क्या होती है ये अपील, ये कब और किन परिस्थितियों मे दायर की जाती है, आइये जानते हैं विस्तार से..
दंड प्रक्रिया संहिता कि धारा 372 -394 तक अपील के प्रावधानों को बताया गया है । अपील को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (इसके बाद सीआरपीसी) में परिभाषित नहीं किया गया है, हालांकि, इसे निचली अदालत द्वारा दिए गए निर्णय की न्यायिक परीक्षा के रूप में बताया जा सकता है। यह एक कानूनी कार्यवाही के रूप में परिभाषित करती है जिसके द्वारा निचली अदालत के निर्णय की समीक्षा के लिए एक मामले को उच्च न्यायालय के समक्ष लाया जाता है ।
सीआरपीसी या किसी अन्य कानून द्वारा निर्धारित वैधानिक (statutory) प्रावधानों को छोड़कर, किसी भी निर्णय या आपराधिक अदालत के आदेश से अपील नहीं की जा सकती है। इस प्रकार, अपील करने का कोई निहित (vested) अधिकार नहीं है क्योंकि पहली अपील भी वैधानिक सीमाओं के अधीन होती है।
इस सिद्धांत के पीछे का महत्व यह है कि जो अदालतें किसी मामले की सुनवाई करती हैं, वे इस अनुमान के साथ पर्याप्त रूप से सक्षम हैं कि मुकदमा बिना किसी पक्षपात के रूप से आयोजित किया गया है। हालांकि, पीड़ित को खास परिस्थितियों में अदालत द्वारा पास किसी भी आदेश के खिलाफ अपील करने का अधिकार है, जिसमें दोषमुक्ति (Acquittal) का निर्णय, कम अपराध के लिए दोषसिद्धि या अपर्याप्त मुआवजा शामिल है।
सामान्य तौर पर, सत्र न्यायालयों और उच्च न्यायालयों (राज्य में अपील की उच्चतम अदालत और जहां अपील की अनुमति है, में अधिक शक्तियों का आनंद लेने वाले) में अपील को नियंत्रित करने के लिए नियमों और प्रक्रियाओं के समान सेट को नियोजित किया जाता है। देश में अपील की शीर्ष अदालत सर्वोच्च न्यायालय है और इसलिए, अपील के मामलों में इसे सबसे व्यापक विवेकाधीन और पूर्ण शक्तियां प्राप्त हैं।
कानून उस व्यक्ति को अपील करने का अधिकार प्रदान करता है जिसे किसी अपराध के लिए परिस्थितियों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय में दोषी ठहराया गया है। अगर पीड़ित का कोई सगा -सम्बंधी नहीं है तो उन मामलों में राज्य सरकार उसकि तरफ से पैरवी करता है । राज्य सरकार को लोक अभियोजक (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) को अभियुक्त व्यक्ति की सजा किअपर्याप्तता (inadequacy) के आधार पर या तो सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय में अपील करने का निर्देश देने का अधिकार दिया गया है।
हालांकि केवल उन मामलों में जहां दोषसिद्धि के लिए मुकदमा उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित नहीं किया गया है। इससे पता चलता है कि अपर्याप्तता के आधार पर सजा के खिलाफ अपील करने का अधिकार पीड़ितों या शिकायतकर्ताओं या किसी अन्य व्यक्ति को नहीं दिया गया है। इसके अलावा, न्यायालय के लिए यह अनिवार्य है कि वह आरोपी को न्याय के हित में सजा में किसी भी वृद्धि के खिलाफ कारण दिखाने का उचित अवसर दे। आरोपी को कारण बताते हुए अपने बरी होने या सजा में कमी के लिए याचना (प्लीड) करने का अधिकार है।
इसके तहत सर्वोच्च न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत के राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किये गए या दिये गए किसी निर्णय, डिक्री, दंडादेश या आदेश के विरुद्ध अपील करने की विशेष अनुमति दे सकता है।