नई दिल्ली: ऐसा नहीं है कि केवल तलाक ले रहे पति या पत्नी को ही भरण पोषण पाने का अधिकार है बल्कि हमारे देश के कानून में वो माता पिता जो अपना गुजारा भत्ता निकालने में असमर्थ हैं अपनी संतान से भरण पोषण का दावा कर सकते हैं.
चलिए समझते हैं कि हिंदू कानून के अनुसार भरण पोषण कितने प्रकार के होते हैं और इसे दावा करने का अधिकार किसके पास है.
भरण पोषण मांगने का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है. कानून के अनुसार अलगाव या तलाक के बाद भरण पोषण एक पति द्वारा पत्नी को भुगतान की जाने वाली आर्थिक सहायता है. अलग- अलग कानून में भरण पोषण के अलग - अलग प्रावधान है.
उदाहरण के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा 125 के अनुसार भरण पोषण का एक धर्मनिरपेक्ष (Secular) नियम है. यानि कई धर्मों के अपने अपने कानून के अनुसार भरण पोषण दिया जाता है, जैसे हिंदुओं के भरण-पोषण के नियम उनके निजी कानून में बताए गए हैं , वहीं मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में मुसलमानों के भरण पोषण के बारे में प्रावधान किया गया है.
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
निम्नलिखित क़ानून के तहत हिंदू कानून में भरण पोषण दिया जाता है
हर हाल में भोजन, कपड़ा, आवास, शिक्षा, चिकित्सा और उपचार की व्यवस्था उपलब्ध कराना अनिवार्य है. अगर कोई अविवाहित पुत्री है तो उसके विवाह के वक्त आर्थिक सहायता प्रदान करना .
कितने तरह के होते हैं भरण पोषण - कानूनी रूप से भरण पोषण दो प्रकार के होते हैं अस्थायी और स्थायी
यह भरण पोषण तब दिया जाता है जब अदालत में तलाक की कार्य़वाही चल रही होती है. इस तरह के भरण पोषण को अदालत के द्वारा ही दिया जाता है. इसमें दावेदार के रहने के खर्चों के साथ साथ कोर्ट की प्रक्रिया में होने वाले खर्चों को भी शामिल किया जाता है.
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 के तहत इस तरह के भरण पोषण का दावा किया जाता है. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(1) का उपयोग भी इस भरण पोषण का दावा करने के लिए किया जा सकता है.
इस तरह का भऱण पोषण तब दिया जाता है जब अदालत की कार्यवाही खत्म हो जाती है. कानून के अनुसार तय राशि को तय समय पर हर माह या किसी निश्चित समय पर दिया जाता है.
इसके बारे में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 25 में प्रावधान किया गया है.
कौन कर सकता है दावा
भरण पोषण का दावा पत्नी, बच्चे (वैध और नाजायज बेटे, अविवाहित वैध और नाजायज बेटियां, विवाहित बेटी जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं), अभिभावक (गार्जियन), या अन्य आश्रित कर सकते हैं.