नई दिल्ली: प्राचीन समय से इंसान और जानवर इस दुनिया में साथ-साथ रहें है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया मनुष्यों ने कुछ जानवरों को पालना शुरू कर दिया और न केवल भोजन और कपड़े के लिए बल्कि मनोरंजन के लिए भी शिकार करना चालू कर दिया. आपने भी सर्कस में या अन्य मनोरंजन के उद्देश्यों के लिए जंगली जानवरों का प्रयोग होते हुए देखा होगा. खराब होते हालातों को देखते हुए ही आधुनिक समय में जानवरों के हितों को संरक्षित करने के लिए कानून का निर्माण किया गया है जैसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972. ताकि देश में वन्य जीवन को नियंत्रित रखा जा सके.
कानून के अनुसार, जानवरों के संबंध में कुछ भेद भी किया गया है कि कौन से जानवर पालतू हो सकते हैं और कौन से जानवर नहीं, और कौन से जंगली जानवर बेचे जा सकते हैं और कौन से नहीं, किनका शिकार किया जा सकता है और किनका नहीं किया जा सकता.
अगर आप एक पशु प्रेमी हैं, जो प्रकृति और जानवरों से प्यार करते हैं, फिर भी कानून आपको आज्ञा नहीं देता है कि आप सभी जानवरों को पालतू बना सकें. आपको स्वामित्व के लिए लाइसेंस की आवश्यकता हो सकती है और ऐसा न होने पर गिरफ़्तारी भी हो सकती है. इसलिए यह आवश्यक है कि हम किसी भी जानवर को पालतू बनाने का निर्णय लेने से पहले उसके बारे में सभी क़ानूनी पहलू को जान लें.
हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक व्यक्ति के खिलाफ अपने घर पर सारस (Crane) रखने का मामला दर्ज किया गया. सारस के घायल पाए जाने पर उस व्यक्ति उसकी मदद की और दोनों की "दोस्ती" सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.
वन्य जीव अधिनियम ने पशुओं को 6 अनुसूचियों में विभाजित किया है. अनुसूची १ के जानवरों में बाघ, ब्लू व्हेल, डॉल्फिन, चीता, तेंदुआ आदि शामिल हैं. जबकि अनुसूची 2 के जानवरों में काला भालू, भारतीय कोबरा, किंग कोबरा और सियार जैसे जानवर शामिल हैं. अनुसूची एक और दो में उल्लिखित जानवरों को उच्च सुरक्षा दी जाती है और भारत में उनका शिकार व व्यापार करना प्रतिबंधित है.
अनुसूची 3 और 4 में ऐसे जानवर शामिल हैं जिनकी आबादी खतरे में नहीं है, हालांकि वे संरक्षित जानवर हैं और उनका शिकार प्रतिबंधित है. अनुसूची 1 और 2 की तुलना में इसमें प्रमुख अंतर यह है कि उन अनुसूची के लिए सजा अधिक गंभीर है. अनुसूची 2 और 3 के जानवरों में लकड़बग्घा, नीलगाय, बाज, किंगफिशर आदि शामिल हैं.
जबकि अनुसूची 5 में ऐसे जानवर शामिल हैं जिनका शिकार किया जा सकता है और सूची में सिर्फ 4 जानवर हैं, जो चूहे, आम कौवे और उड़ने वाली लोमड़ी हैं. अनुसूची 6 उन पौधों के बारे में बात करती है जिनकी खेती, बिक्री या स्वामित्व नहीं किया जा सकता है.
वन्यजीव अधिनियम की धारा 9 के अनुसार अनुसूची 1,2,3,4 और 5 में उल्लिखित जानवरों का शिकार प्रतिबंधित है. हालांकि कुछ मामलों में इसकी अनुमति है जिनका उल्लेख अधिनियम की धारा 11 और 12 के तहत किया गया है.
हमें पता होना चाहिए कि इस अधिनियम के तहत शिकार एक व्यापक शब्द है, और इसमें न केवल मारना बल्कि किसी जंगली या बंदी जानवर को बंदी बना कर रखना, पकड़ना, भगाना, फँसाना या चारा डाल के फंसना या ऐसा करने का हर प्रयास शामिल है.
कोई भी व्यक्ति जो आत्मरक्षा में अपने या किसी अन्य व्यक्ति के जीवन की रक्षा के लिए कार्य करता है और ऐसा करने में जंगली जानवर को मारता है या घायल करता है, तो वह किसी भी सजा के लिए उत्तरदायी नहीं होगा.
जबकि मुख्य वन्यजीव अधिकारी भी किसी जानवर के शिकार की अनुमति दे सकता है यदि उसे लगता है कि ऐसा जानवर मानव जीवन के लिए खतरनाक है या अक्षम है या उसे कोई बीमारी है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है या बेहतर नहीं बनाया जा सकता है.
हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक आदमी जिसने लगभग एक साल पहले एक सारस क्रेन को बचाया था, उसके खिलाफ एक जंगली जानवर को बंदी रखने और अन्य सम्बंधित धाराओं उल्लंघन के लिए केस दर्ज कर दिया गया है. हालांकि वन विभाग द्वारा जानवर को अपने कब्जे में ले लिया गया था, फिर भी उसके खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के उल्लंघन का मामला दर्ज किया गया है.
इसलिए अगर आपके पास कोई जानवर है जो वन्यजीव अधिनियम के तहत संरक्षित है, तो इसके बारे में अधिकारियों को सूचित करना महत्वपूर्ण है. हालांकि केवल वही लोग जिनके पास लाइसेंस है, वे ऐसे जानवर रख सकते हैं, जिन्हें वन अधिकारियों द्वारा अनुमोदित और सत्यापित किया जाएगा.
वन अधिकारी और पुलिस किसी भी वाहन को रोक सकते हैं और उसकी तलाशी ले सकते हैं या किसी भूमि में प्रवेश करके जांच कर सकते हैं और किसी भी बंदी जानवर को पकड़ सकते हैं. जानवर को बंदी बनाना दंडनीय है क्योंकि यह अधिनियम के तहत किसी जानवर का शिकार करने के समान है क्योंकि इसे "शिकार" करने की परिभाषा में ही रखा गया है.
किसी जानवर को बंदी बनाने के लिए हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को एक मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया जाना चाहिए और अगर वह पर्याप्त दस्तावेज़ दिखाने में विफल रहता है तो यह इस अधिनियम का उल्लंघन माना जाएगा.
कोई भी व्यक्ति जो इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान या नियम का उल्लंघन करता है, तो उसे दोषी ठहराए जाने के बाद तीन साल तक की कैद या 25000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
हालांकि कोई भी अपराध जो किसी व्यक्ति द्वारा अनुसूची 1 या अनुसूची 2 के भाग 2 में उल्लिखित जानवरों के खिलाफ किया जाएगा, उसे कम से कम 3 साल के कारावास से दंडित किया जा सकता है, जो कि सात साल तक बढ़ सकता है, और जुर्माना दस हज़ार से अधिक होना चाहिए.