नई दिल्ली: बाजारों में कौन सा सामान बेचना है या नहीं इसके लिए भी कुछ नियम बनाए गए हैं. जिसका पालन करना हर व्यवसायी की जिम्मेदारी है. आईए जानते हैं जब भी किसी माल को बाजार में बेचना होता है तो उससे संबंधित माल- विक्रय संविदा (Contract of Sale of Goods) में किस तरह की शर्तें और वारंटियां दी जाती है.
माल- विक्रय संविदा में माल के संबंध में कई अनुबंध (Contract) होते हैं, जैसे माल कि गुणवत्ता (Quality) क्या होगी, माल की मात्रा (Quantity) क्या होगी, किस समय परिदान (Delivery) होगा आदि.माल विक्रय अधिनियम 1930 की धारा 4(1) के अनुसार माल के विक्रय की संविदा वह संविदा होती है जिसके द्वारा विक्रेता माल के स्वामित्व का क्रेता को एक मूल्य पर हस्तान्तरण करता है या करने का करार करता है.विक्रय की संविदा एक आंशिक स्वामी (Post owner) और दूसरे के बीच हो सकेगी. विक्रय की संविदा प्रतिबन्ध रहित (Absolute) या सप्रतिबन्ध (Conditional) हो सकती है. [धारा 4(1) और (2)]
1.मुख्य प्रयोजन : जब भी किसी संविदा में शर्तों को रखा जाता है तो उसका पालन करना हर पक्ष का कर्तव्य होता है, अगर कोई पक्ष उसकी अवहेलनी करता है, तो ऐसे में उस संविदा को खत्म भी किया जा सकता है, लेकिन संविदा में बताए गए वारंटी के नियम के भंग होने पर नुकसान के लिए तो दावा किया जा सकता है, लेकिन माल को अस्वीकार करने का अधिकार नहीं देता है.
2. भंग की की स्थिति : जब भी कोई पक्ष संविदा में दी गई शर्त को नहीं मानता है तो निर्दोष पक्षकार संविदा को विखंडित करके नुकसान को वसूल करने के लिए वाद चला सकता है. अगर विक्रेता शर्त का उल्लंघन करता है तो क्रेता संविदा रद्द करके माल वापस कर के भुगतान की गई कीमत वापस ले सकता है. वहीं वारंटी के भंग की दशा में निर्दोष पक्षकार संविदा को विखंडित नहीं कर सकता, वह केवल नुकसान के लिए वाद चला सकता है.
इस प्रकार यदि विक्रेता वारंटी का उल्लंघन करता है तो क्रेता संविदा को विखंडित करके माल वापस नहीं कर सकता है और भुगतान की गई कीमत वसूल नहीं कर सकता है, वह केवल उल्लंघन के कारण होने वाले नुकसान के लिए नुकसानी या प्रतिकर वसूल करने के लिए विक्रेता के विरुद्ध वाद चला सकता है.
क्रेता को शर्त त्यागने या वारंटी मानने का विकल्प [धारा 13 (1)]
क्रेता द्वारा माल स्वीकार करने पर वारंटी माना जाना [धारा 13 (2)]
पालन से माफी की स्थिति में दायित्व से मुक्ति. [धारा 13 (3)]
माल विक्रय अधिनियम में निम्नलिखित विवक्षित शर्तें एवं वारंटियां दी गई हैं :
विक्रेता को बेचने का हक (Right to Sell) [धारा 14( a)]
माल वर्णन के अनुरूप है [धारा 15]
माल वर्णन एवं नमूने के अनुरूप है [धारा 15]
माल क्रेता के प्रयोजन के लिए उपयुक्त है [धारा 16 (1)]
माल वाणिज्यिक क्वालिटी का हो [धारा 16 (2)]
माल नमूने के अनुरूप हो [धारा 17 (2)]
माल के निर्वाध कब्जा एवं उपभोग का अधिकार [धारा 14 (6)]
माल भार या विलंगम से मुक्त होगा [धारा 14 (c)]
1) दो पक्षकार: विक्रय की संविदा का सबसे महत्वपूर्ण तत्व यह है कि इसमें दो पक्षकार होते हैं एक विक्रेता और दूसरा क्रेता. दोनों ही अलग - अलग व्यक्ति होते हैं, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी वस्तुएं या माल खुद ही खरीद नहीं सकता.
जैसे;इस सिद्धांत का अनुमोदन उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने मैसर्स खेदुत सहकारी जिनिंग एण्ड प्रोसेसिंग सोसायटी बनाम स्टेट ऑफ गुजरात केस में किया था. जिसमें सहकारी संघ के उपबंधों के अधीन संघ के सदस्यों की रुई एकत्र करने, प्रोसेसिंग करने और उसके बाद बेचने का अधिकार या, जो बेचने के बाद मूल्य या कीमत इसके सदस्यों को अदा करता था, किया. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार संघ द्वारा अपने सदस्यों का एजेंट होने के नाते उनकी रुई एकत्र करना विक्रय नहीं है.
2) धन के रूप में प्रतिफल कीमत: माल की बिक्री की संविदा का अगला आवश्यक तत्व यह है कि माल कीमत के लिए बेचना किया जाता है. माल का विक्रय तभी माना जाता है जब माल के मूल्य का भुगतान पैसों में किया जाये.
3) पक्षकारों की संविदा करने में सक्षम एवं स्वतंत्र सहमति होना: जो भी संविदा किया जा रहा है इसके सभी पक्षकार संविदा करने में सक्षम होने चाहिए यानि कि वह वह नाबालिग न हों, पागल या मानसिक रूप से सक्षम न हो अथवा विधि द्वारा निषिद्ध न होना चाहिए. साथ ही पक्षकारों के बीच विक्रय की संविदा स्वतंत्र और सहमति’ यानि डर, कपट, मिथ्या व्यपदेश अनुचित दबाव और भूल नहीं की गई हो.
4) माल संविदा की विषय-वस्तु: विक्रय की संविदा की विषय-वस्तु हमेशा माल होना चाहिए. माल की परिभाषा धारा 2(7) में बताई गई है, जिसके अनुसार माल के अन्तर्गत वस्तुएं, चीजें और सामग्री आती हैं.
5) संपत्ति का हस्तांतरण: इसमें संपत्ति के स्वामित्व का हस्तांतरण होना या माल को हस्तांतरित करने का करार किया जाना जरूरी होता है.