नई दिल्ली: इतिहास गवाह है, सत्ता और धन का लालच, भाई-भाई को भी दुश्मन बना देता है. अपने ही अपनों के खून के प्यासे हो जाते हैं. परिवार में पैतृक संपत्ति का विवाद अच्छे खासे घर को बर्बाद कर देता है. इन सब मामलों में कई बार हिस्सेदार सारी संपत्ति को हड़पने के चक्कर में चुपचाप उसे बेचने की भी योजना बनाते हैं जिसके कारण बाकी के हिस्सेदार परेशान होते हैं और सोचने पर मजबूर हो जाते हैं की ऐसे प्रयास को कैसे रोका जाए.
पैतृक संपत्ति के जितने भी हिस्सेदार हैं वो अगर किसी हिस्सेदार को संपत्ति बेचने से रोकना चाहते हैं तो उनके पास यह अधिकार है कि वो उसे रोक सकते हैं. इसके लिए उन्हें कानून की मदद लेनी होगी. चलिए जानते हैं की हिस्सेदार को संपत्ति बेचने से रोकने का सही तरीका क्या है?.
अदालतें दो प्रकार की होती हैं एक दीवानी और दूसरी आपराधिक अदालत. आपराधिक अदालतें आपराधिक मामलों को संभालती हैं वही दीवानी अदालत यानि सिविल कोर्ट सरकार द्वारा दो या दो से अधिक लोगों के बीच विवादों या तर्कों को हल करने के लिए बनाई गई संस्था है.
सिविल कोर्ट प्रॉपर्टी को नुकसान, प्रोबेट मुद्दों, पारिवारिक समस्याएं, तलाक, मकान मालिक और किराएदार सम्बन्धी विवाद आदि इस तरह के मामलों का निपटारा करती है.
जो हिस्सेदार संपत्ति बेचने से रोकना चाहते हैं उन्हें अपने एरिया के सिविल कोर्ट में बंटवारे का एक दीवानी मुकदमा (Civil Suit) दायर करना होगा.
जो बंटवारे का सिविल सूट लगाया गया है उस पर सुनवाई होने में समय लग जाएगा और तब तक अगर आपको शक है कि हिस्सेदार संपत्ति को बेच सकता है, तो ऐसे में आपको सिविल सूट के साथ तत्काल कार्यवाही के लिए स्टे एप्लिकेशन भी देना होगा ताकि उस एप्लीकेशन पर तत्काल सुनवाई हो.
यह स्टे एप्लिकेशन सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 39 नियम 1 और 2 के अंतर्गत प्रस्तुत की जाती है. इस एप्लिकेशन में संपत्ति को अवैध रूप से बेचने वाले हिस्सेदार या हिस्सेदारों के साथ क्षेत्र के संबंधित सब रजिस्ट्रार को भी पक्षकार बनाया जाता है.
स्टे एप्लिकेशन में वादी पक्ष अपनी ओर से कोर्ट से यह निवेदन करता है कि जब तक मामले में अदालत का अंतिम फैसला नहीं आ जाए तब तक संपत्ति बेचने से प्रतिवादी को रोका जाए और ऐसा आदेश पारित किया जाए कि सब रजिस्ट्रार ऐसी संपत्ति के संबंध में कोई भी डीड रजिस्टर्ड नहीं करें.
कोर्ट वादी और प्रतिवादी द्वारा पेश किए गए सबूतों को पहले देखती है फिर दोनों पक्षकारों की बहस को सुनती है. अगर कोर्ट को यह लगता है कि अंतिम निर्णय तक संपत्ति को बेचने से स्टे किया जा सकता है तब कोर्ट ऐसा आदेश पारित करते हुए संपत्ति को बेचने पर रोक लगा सकती है.