
मंदिर का प्रशासन
मंदिरों का प्रशासन और उसमें पूजा करानेवाले पुजारियों का चयन समाज में हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है.

योग्यता के आधार पर
अक्सर इन चयनों में सामान्यत: समाजिक धारणाओं, परंपराओं और योग्यता की विशिष्टता का ध्यान रखा जाता है. इसमें अलग-अलग जातियों के अपने-अपने दावे भी होते हैं.

Madras HC
इसी तरह का एक विवाद मद्रास हाई कोर्ट के सामने आया, जिसमें मंदिर का प्रशासन को लेकर संबंधित पक्षों में आपसी सहमति नहीं बन पा रही थी.

हिंदू धार्मिक और चैरिटेबल एंडोमेंट विभाग
मामले में याचिकाकर्ताओं ने मद्रास हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि वे हिंदू धार्मिक और चैरिटेबल एंडोमेंट विभाग को निर्देश दें कि,

मंंदिर के प्रशासन अलग करने की मांग
अरुलमिगु पोंकालीअम्मन मंदिर के मैनेजमेंट को अन्य तीन, अरुलमिघु मरिअम्मन, अंगलम्मन और पेरुमल मंदिरों से अलग किया जाए.

जातिगतआधार पर चयन
याचिकाकर्ता ने इसके लिए तर्क किया कि अन्य तीन मंदिरों का प्रबंधन विभिन्न जातियों के व्यक्तियों द्वारा किया जाता है,

पोंकालीअम्मन मंदिर का प्रशासन
जबकि पोंकालीअम्मन मंदिर का ऐतिहासिक रूप से प्रबंधन केवल उसकी जाति के सदस्यों द्वारा किया जा रहा है और उसे इसकी इजाजत दी जाए.

किसी जाति का स्वामित्व नहीं
मद्रास हाई कोर्ट ने दलील से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि कोई जाति मंदिर का स्वामित्व नहीं दावा कर सकती है, और जाति पहचान के आधार पर मंदिर का प्रशासन कोई धार्मिक प्रथा नहीं है.

जातिहीन समाज
साथ ही ऐसे दावे जाति विभाजन को बढ़ावा देते हैं और संविधान के जातिहीन समाज के लक्ष्य के खिलाफ हैं.

संविधान का आर्टिकल 25 और 26
अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 केवल आवश्यक धार्मिक प्रथाओं और धार्मिक संप्रदायों के अधिकारों की रक्षा करते हैं. जातियों के अनुयायी केवल अपने घृणा और असमानता को 'धार्मिक संप्रदाय' के रूप में छिपाने का प्रयास करते हैं.

खारिज की मांग
याचिका खारिज करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि मंदिर एक सार्वजनिक मंदिर है और इसलिए इसे सभी भक्तों द्वारा पूजा, प्रबंधित और प्रशासित किया जा सकता है.