Advertisement

'बच्चे की एडॉप्शन देने में महिला का 'मैरिटल स्टेटस' पूछना जरूरी नहीं', मद्रास HC ने हिंदू एडॉप्शन लॉ का दिया हवाला

मद्रास हाईकोर्ट ने हिंदू एडॉप्शन एवं मेंटनेंस एक्ट, 1956 (Hindu Adoptions And Maintenance Act, 1956) का हवाला देते हुए कहा कि कानून के अनुसार महिला अपने जैविक बच्चे को गोद देने को लेकर अपनी वैवाहिक स्थिति (Marital Status) बताने की जरूरत नहीं है.

मद्रास हाईकोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : June 18, 2024 11:11 AM IST

Giving Up Her Child For Adoption: हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने बच्चे को गोद देने से जुड़े मामले में अहम टिप्पणी की है. अदालत ने निर्देश दिया कि अपने बच्चे को गोद देनेवाली महिला का मैरिटल स्टेटस जानना आवश्यक नहीं है. फैसले में अदालत ने हिंदू एडॉप्शन एवं मेंटनेंस एक्ट, 1956 (Hindu Adoptions And Maintenance Act, 1956) का हवाला देते हुए कहा कि कानून के अनुसार महिला अपने जैविक बच्चे को गोद देने को लेकर अपनी वैवाहिक स्थिति (Marital Status) बताने की जरूरत नहीं है. बता दें कि महिला अपने बच्चे को गोद देने की को लेकर प्रयासरत थी, लेकिन अधिकारियों द्वारा पति की अनुमति के बिना उसके आवेदन को स्वीकार करने से इंकार कर रहे थे. मामला मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष पहुंचा, तो उन्होंने बच्चे की एडॉप्शन देने से जुड़ी प्रक्रियाओं को जल्द से जल्द कराने के निर्देश दिए हैं.

गोद देने की प्रक्रिया में वैवाहिक स्थिति जरूरी नहीं:HC

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने इस मामले की सुनवाई की. जस्टिस ने कहा कि अगर एक महिला, जो अपने जैविक बच्चे की एकमात्र अभिभावक है, को हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत अपने बच्चे को गोद देने के योग्य माना जाना चाहिए.

जस्टिस स्वामीनाथन ने जनवरी 2022 के उप-रजिस्ट्रार के आदेश को खारिज कर दिया, जिसने एक तीन वर्षीय बच्चे के दत्तक पत्र (Adoption Deed) को पंजीकृत करने से इंकार कर दिया है. उप रजिस्ट्रार ने कहा कि बच्चा एक "अवैध संबंध" (Illicit Relationship) से पैदा हुआ था और उसकी जैविक मां एडॉप्शन देने के समय नाबालिग थी.

Also Read

More News

महिला बालिग हुई, तो उसने दोबारा से बच्चे को एडॉप्शन के लिए देने का दावा किया. इस बार अधिकारियों ने उसे बताया कि पिता की सहमति आवश्यक है. इस आधार पर उसके आवेदन को रद्द कर दिया गया.

हाईकोर्ट ने अधिकारियों के इस दलील को स्वीकार करने से इंकार कर किया है. अदालत ने अधिकारियों के इस फैसले को 'पितृसत्तात्मक मानसिकता' से प्रेरत बताया और हिंदू एडॉप्शन और मेंटनेंस एक्ट, 1956 का हवाला दिया.

बेंच ने कहा,

" हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की सेक्शन 9 'पिता' और 'मां' शब्दों का उपयोग करती है. यह 'पति' और 'पत्नी' शब्दों का उपयोग नहीं करती. यहां तक ​​कि सेक्शन 9(2) की उप-धारा के प्रावधान में भी जीवित होने पर किसी के पति या पत्नी की सहमति प्राप्त करने का प्रावधान नहीं है."

अदालत ने ये भी स्पष्ट किया कि इस मामले में सेक्शन 9(2) को लागू करने के लिए, बच्चे पर दावा करने के लिए पिता को उपस्थित रहना पड़ेगा.

बेंच ने आगे कहा,

"संभव है कि एक बच्चा लिव इन रिलेशनशिप या अवैध अंतरंगता (Illicit Intimacy) के कारण पैदा हो सकता है. मां बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए उसे गोद देना चाह रही है और पिता ने अपने बच्चे को छोड़ दिया है, ऐसी परिस्थिति हो सकती है."

इन संभावनाओं पर विचार करके अदालत ने बच्चे को गोद देने के लिए सारी प्रक्रियाओं का पालन करने की इजाजत दे दी है. वहीं, अधिकारियों को जल्द से जल्द गोद लेने की प्रक्रियाओं को पूरा करने के निर्देश दिए हैं.