नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने पारिवारिक संपंति में महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि तमिलनाडु राज्य में आदिवासी समुदायों की महिलाओं को भी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत अपने पुरुषों के बराबर समान हिस्सेदारी की हकदार है.
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने ये फैसला देते हुए कहा कि भले ही किसी अधिसूचित जनजाति के रीति-रिवाज या प्रथाएं महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त करने से रोकती हों, ऐसे रीति-रिवाज कानून और सार्वजनिक नीति पर हावी नहीं हो सकते.
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए ये फैसला दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि आदिवासी महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पारिवारिक संपत्ति में उनके हिस्से से बाहर नहीं किया जा सकता है.
तमिलनाडु के सलेम की जिला अदालत Additional District Court 2 ने 6 अक्टूबर 2017 अधिसूचित जनजाति से संबंधित एक माँ-बेटी Semmayee और Poonkodi की ओर से दायर मुकदमें में आदेश पारित किया था.
ट्रायल कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों को लागू करते हुए आदेश दिया था. जिसमें कहा गया कि तमिलनाडु में आदिवासी महिलाएं परिवार की संपत्ति में हिस्सेदारी के बराबर हकदार हैं, जिस तरह परिवार के अन्य पुरुष सदस्य की हिस्सेदारी होती है.
ट्रायल कोर्ट के आदेश से असंतुष्ट परिवार के दूसरे पुरूष रिश्तेदार Saravanan और Venkatachalam ने मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की.
अपील पर सुनवाई के दौरान अपीलकर्ताओं ने दावा किया कि विवादित संपत्ति एक समझौते का हिस्सा थी, जिसके अनुसार दोनों महिलाएं हिस्सा पाने की हकदार नहीं थीं. साथ ही यह भी तर्क दिया कि आदिवासी महिलाओं को स्पष्ट रूप से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधानों के आवेदन से बाहर रखा गया था.
अपीलकर्ताओं के अधिवक्तओं ने तर्क दिया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) निर्धारित करती है कि इसके प्रावधान किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर तभी लागू हो सकते हैं जब केंद्र सरकार की अधिसूचना इसके लिए प्रावधान करती है.
अपने बचाव महिला सदस्यों की ओर से इसका विरोध करते हुए कहा गया कि वे जिस समुदाय से संबंधित है वहां पर संपत्ति में किसी के हिस्से के मुद्दे को नियंत्रित करने को लेकर कोई रिवाज नहीं है.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) का उद्देश्य महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा करने से रोकना नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि लेकिन यह प्रावधान केंद्र सरकार को उन आदिवासी समुदायों को अधिसूचित करने का मार्ग प्रशस्त करता है, जो पहले ही आगे बढ़ चुके हैं और जिनके आदिम रीति-रिवाज और प्रथाएं हैं.
हाईकोर्ट ने कहा कि जब अनुसूचित जनजाति से संबंधित महिलाओं की बात आती है तो विरासत के मामले में किसी भी असमानता या असंवैधानिकता को आगे बढ़ाने का कोई भी समर्थन नहीं करेगा.
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया कि आदिवासी समुदायों की महिलाएं भी पारिवारिक संपत्ति में समान हिस्सेदारी की हकदार है.
हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को भी इस मामले में अपेक्षित कदम उठाने का निर्देश दिया है कि वह महिलाओं के समान संपत्ति के अधिकार की रक्षा के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 2 (2) के तहत केंद्र सरकार के माध्यम से उचित अधिसूचना जारी कराने का प्रयास करे.