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पिता के खिलाफ बच्चों को भड़काना मानसिक क्रूरता, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

पति द्वारा दायर तलाक के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा बच्चे को पिता के खिलाफ भड़काना, पति के साथ मानसिक क्रूरता करने के जैसा है.

Written by My Lord Team |Published : March 8, 2024 12:26 PM IST

Divorce Case: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने परिवारिक समस्याओं से जुड़े मामले में बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि पत्नी के द्वारा बच्चे को पिता के खिलाफ भड़काना, उससे नहीं मिलने देना, पति के साथ मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) है. बता दें कि इस मामले में पति ने पत्नी से तलाक की मांग की थी. पति ने एक दूसरे मामले में बच्चे की कस्टडी की मांग भी की थी. इस दौरान मामले में उत्पन्न परिस्थितियों पर कोर्ट ने अमुक बात कहीं है. उच्च न्यायालय ने पति द्वारा की गई तलाक की मांग को मंजूरी दी है.

पति के साथ मानसिक क्रूरता: MP HC

जस्टिस शील नागू और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने संबंधित मामले को सुना. पति ने तलाक की मांग को कोर्ट ने स्वीकृति दे दी है. इस सुनवाई के दौरान पति को बच्चे से नहीं मिलने देने पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी भी की. 

कोर्ट ने पाया. साल 2014 में दंपत्ति को एक बेटी हुई. जन्म के समय से ही पति को बच्चे से मिलने नहीं दिया जाता रहा.पति ने सिविल सूट दायर कर बच्चे की कस्टडी की मांग की. इस मामले में कोर्ट ने पत्नी को आदेश दिया. पिता को बच्ची से मिलने दिया जाए. फिर भी पत्नी ने पति को बच्चे से मिलने नहीं दिया. 

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कोर्ट ने पति को बच्चे से नहीं मिलने देने मानसिक क्रूरता और पेरैंटल एलियनेशन की बात कहीं. उपयुक्त मामले में केरल हाईकोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का जिक्र भी किया. 

कोर्ट ने कहा, 

“उपरोक्त घटना में, दिल्ली और केरल हाईकोर्ट के फैसले और वर्तमान मामले में देखा जा सकता है कि पत्नी ने पति को नाबालिग बेटी से दूर रखने की कोशिश की है और उसे पिता के खिलाफ बोलने के लिए सिखाया है. ये गंभीर है और निश्चित रूप से इसमें पति के साथ मानसिक क्रूरता हुई है.”

क्या है मामला?

पति ने दो मुकदमे किया है. पहला, बच्चे की कस्टडी को लेकर. दूसरा में पत्नी से तलाक की मांग की है. अपीलकर्ता (पति) ने अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी की मांग की. मामला जबलपुर कोर्ट में पहुंचा. मांग के लिए कारण दिया कि पत्नी, उसे बच्ची से मिलने नहीं देती हैं. 18 मई, 2017 के दिन कोर्ट ने याचिका स्वीकार की. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बच्चे को साथ लाने के निर्देश दिए, जिससे पिता अपनी बेटी से मिल सकें. अक्टूबर, 2020 में फैमिली कोर्ट ने पत्नी की अनिच्छा को नोटिस किया. कोर्ट ने पाया कि पत्नी उसे पति से मिलने देना नहीं चाहती है.

तलाक मामले को फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था. पति ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. हाईकोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए तलाक को मंजूरी दी है. 

बेंच ने कहा, 

“...पत्नी ने कई शिकायतें दर्ज कराई हैं. विवाह अपरिहार्य रूप से टूट गया है...भले ही यह अदालत अपीलकर्ता पति को तलाक देने से इनकार कर दे, लेकिन संबंध सुधरने की कोई संभावना नहीं है.पत्नी के आचरण से बहुत सारी कड़वाहट पैदा हो गई है, जो क्रूरता के बराबर है.”

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ये कहकर तलाक को मंजूरी दी है.