नई दिल्ली: आम तौर से, जब कोई व्यक्ति शपथ या किसी कानून के तहत कोई साक्ष्य प्रस्तुत करता है या कोर्ट में गवाही देता है, तो उस सबूत का सच (असली) होना निश्चित माना जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि अगर कोई व्यक्ति झूठी गवाही या सबूत देता है, जिसे वह सच नहीं मानता है या जानता है कि वह झूठे सबूत हैं तो उसे भारतीय दंड सहिंता के तहत दंडित किया जा सकता है.आइए जानते हैं, झूठी गवाही या झूठे सबूत का क्या मतलब है और न्यायालय में ऐसे सबूत जमा करने पर क्या हो सकती है भारतीय दंड सहिंता (IPC) के तहत कार्रवाई.
इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जो कानूनी रूप से सत्य बोलने के लिए बाध्य है, या तो शपथ द्वारा या कानून के किसी स्पष्ट प्रावधान द्वारा, लेकिन वह कोई ऐसा बयान देता है जो झूठा है और जिसे वह जानता है या विश्वास करता है कि वह झूठ है या सत्य नहीं है, इस काम को झूठा साक्ष्य देना कहा जाता है. झूठा साक्ष्य देना या तो मौखिक रूप से हो सकता है या किसी भी अन्य तरीके से दिया गया साक्ष्य हो सकता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 192 के अनुसार, एक व्यक्ति झूठा साक्ष्य गढ़ने (Fabricate) के लिए तब दंडित किया जा सकता जब वह:
- कोई ऐसी स्थिति उत्तपन्न करता है; या
- किसी भी पुस्तक, रिकॉर्ड या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में कोई गलत/झूठी प्रविष्टि (Entry) करता है; या
- झूठे साक्ष्य से युक्त कोई भी दस्तावेज़ या ई-रिकॉर्ड बनाता है.
जिससे अदालत या कोई लोक सेवक या कोई मध्यस्थ (Arbitrator), किसी कानूनी मामले से जुड़े मुद्दे के संबंध में कोई राय बनाता है तो उसे झूठा साक्ष्य गढ़ने (Fabricate) का गुनहगार माना जाता है.
धारा 193 के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding) में धारा 191 या धारा 192 का दोषी पाया जाता है तो उसे अधिकतम 7 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है. किसी अन्य तरह की कार्यवाही में दोषी पाए जाने पर उसे अधिकतम 3 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.
वहीं झूठी गवाही या सबूत की वजह से व्यक्ति को दी गई सख्त सज़ा के अनुसार भी, झूठे सबूत देने वाले व्यक्ति को ज़्यादा कड़ी सज़ा दी जा सकती है।
धारा 194 के मुताबिक, यदि झूठी गवाही या साक्ष्य देते समय व्यक्ति को पता था कि इसके कारण मृत्युदंड की सज़ा दी जा सकती है, तो झूठे सबूत देने वाले व्यक्ति को आजीवन कारावास या 10 साल तक के कारावास तक की सज़ा दी जा सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इस धारा के अनुसार, यदि ऐसे झूठे साक्ष्य के कारण किसी निर्दोष व्यक्ति को मृत्युदंड दिया जाता है और उसे मार भी दिया जाता है, तो झूठे सबूत देने वाले व्यक्ति को भी मृत्युदंड की सज़ा दी जा सकती है।
धारा 195 कहती है कि यदि झूठी गवाही या साक्ष्य देते समय व्यक्ति को पता था कि इसके कारण आजीवन कारावास या 7 साल से अधिक के कारावास की सज़ा दी जा सकती है, तो झूठे सबूत देने वाले व्यक्ति को भी सामान सज़ा दी जा सकती है।
भारतीय दंड सहिंता के तहत ना केवल झूठे सबूत देने वाले व्यक्ति को सज़ा जाती है बल्कि झूठे सबूत देने के लिए धमकाने वाले व्यक्ति को भी सज़ा देने का प्रावधान किया गया है।
धारा 195-ए के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति या उसकी प्रतिष्ठा या उसकी संपत्ति को चोट पहुँचाने की धमकी देता है और उसे झूठे सबूत देने के लिए विवश करता तो ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 7 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।
यदि झूठे सबूत के कारण किसी निर्दोष व्यक्ति को गुनहगार ठहराया जाता है और मृत्युदंड या 7 वर्ष से अधिक के कारावास की सज़ा दी जाती है तो धमकाने वाले व्यक्ति को भी सामान सज़ा दी जा सकती है।
झूठा साक्ष्य/सबूत ऐसी सूचना होती है जो किसी व्यक्ति द्वारा न्यायिक मामले के निर्णय की दिशा मोड़ने के लिए दी जाती है। ऐसे साक्ष्य देने का मुख्य उद्देश्य होता है दोषसिद्धि प्राप्त करना या निर्दोष व्यक्ति को दोषी ठहराना। तो निर्दोष व्यक्तियों को प्रताड़ना से बचाने और न्याय व्यवस्था में जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए झूठे सबूत से जुड़े अपराधों के लिए, दोषियों सख्त सजा देना बहुत जरूरी है।