नई दिल्ली: हमारे देश का कानून अपराधी को सुधारने और पुन: समाज में शामिल होने के लिए कई मौके उपलब्ध कराता है. गंभीर प्रकृति के अपराध करने वाले लोगों को कानून सख्त सजा तो देता ही है, लेकिन कई बार अदालत उन्हे एकांत कारावास (solitary confinement) की सजा भी सुनाती है.
एकांत कारावास जैसा की इसके शब्दों से ही सामने आता है कि अपराधी को जेल में अकेले रहने की सजा.IPC की धारा 73 और 74 में एकांत कारावास के बारे में बताया गया है और उससे सम्बंधित बातो को रेखांकित किया गया है. एकांत कारावास में रखने का निर्णय कोर्ट के पास होता है, जिसे उसके किये गए अपराध के अनुसार कोर्ट अपना फैसला सुनाती है जहां , उसे दूसरे कैदियों से अलग रखा जाता है.
एकान्त कारावास, कारावास का एक रूप है जिसमें कैदी जेल के कमरे में अकेला रहता है, जिसमें उसे अन्य लोगों के साथ मिलने की अनुमति नहीं होती है और उसी कमरे में उसे अपने कुछ दिन या महीने व्यतीत करने होते है. बल्कि उसे खाना भी उसी कमरे में दिया जाता है.
एकांत कारावास की स्थापना का मुख्य लक्ष्य कठोर अपराधी को अकेले में यह विचार करने के लिए मजबूर करना है कि उसने क्या किया है. आदतन अपराधी या बेहद गंभीर अपराध करने वाले अपराधियों को लंबे समय तक अकेला रखने से उनके हौसले पस्त हो जाते है.
एकान्त कारावास अन्य कैदियों से कैदी का अलग रखने और समाज से पूर्ण अलग रखने के लिए होता है. यह एक चरम उपाय है और इसे असाधारण और अत्याचार के असाधारण मामलों में शायद ही कभी लागू किया जाना है. भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 73 में एकान्त कारावास को समझाया गया है.
IPC की धारा 73 में कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति को कठोर कारावास दिया गया है, तो इसका मतलब होता है की उस व्यक्ति को एकांत कारावास में रखा जाएगा. इस धारा के मुताबिक उस व्यक्ति को एक बार में 14 दिनों से अधिक नहीं एकांत कारावास में नहीं रखा जा सकता है , जबकि यदि किसी व्यक्ति को 3 महीने से अधिक का कारावास प्राप्त हुआ है, तो एकांत कारावास एक महीने में सिर्फ सात दिन ही दी जा सकती है.
IPC की धारा 73 में कहा गया है की अगर किसी व्यक्ति को छह महीने से ज़्यादा की सजा नहीं हुई है तो उसे एकांत कारवास में एक महीने से ज़्यादा नहीं रखा जा सकता है. वही अगर उस व्यक्ति को छह महीने से लेकर एक साल की कारावास की सजा सुनाई गयी है तो उस व्यक्ति को दो महीने से ज़्यादा एकांत कारावास में नहीं रखा जा सकता है.
वही अगर किसी व्यक्ति को एक साल से ज़्यादा की कारावास की सज़ा सुनाई गयी है तो उसे तीन महीने से ज़्यादा एकांत कारावास में नहीं रखा जायेगा.
किशोर सिंह रविंदर देव बनाम राजस्थान राज्य में, सुप्रीम कोर्ट ने एकांत कारावास को एक क्रूर प्रकार की क़ैद के रूप में वर्णित किया.कोर्ट ने कहा की एकान्त कारावास में, कैदी अपने साथी कैदियों से पूरी तरह अलग हो जाते हैं और बाहरी दुनिया से अलग हो जाते हैं. यह एक कठोर उपाय है जिसका उपयोग अकल्पनीय परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए.
सुनील बत्रा II बनाम दिल्ली प्रशासन के मामले में एकान्त कारावास का लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कोर्ट के अनुसार, एकांत कारावास लोगों के शारीरिक और मानसिक पीड़ा का कारण बनता है . यह भी नोट किया गया था कि एकांत कारावास कैदियों को स्थानांतरित करने, घुलने-मिलने और अन्य कैदियों के साथ रहने के अधिकार को प्रतिबंधित करना अनुचित है. यह ऐसे व्यक्ति के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, जब तक कि कानून द्वारा यह उचित और जरूरी न हो.
किशोर सिंह, रविंदर देव आदि बनाम राजस्थान राज्य मामले में अदालत ने कहा कि एकान्त कारावास केवल सुरक्षा कारणों से या कुछ असाधारण मामलों में ही लगाया जा सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा की एकांत कारावास असभ्य व्यवहार करने, जेल में गंदगी करने जैसे आधारों पर नहीं लगाया जा सकता है.