नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था देते हुए कहा है कि एक न्यायिक अधिकारी फैसले के पूरे पाठ को तैयार किए बिना या लिखे बिना, केवल उसके निष्कर्ष वाले हिस्से को खुली अदालत में जाहिर नहीं कर सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही कर्नाटक के एक निचली अदालत में कार्यरत Civil Judge को बर्खास्त करने का आदेश दिया है. Civil Judge को एक मामले में फैसला तैयार किए बिना केवल उसके perative part of judgment सुना देने का दोषी पाया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से दायर अपील पर दिया है. हाईकोर्ट रजिस्ट्रार ने कर्नाटक हाईकोर्ट की दो सदस्य खण्डपीठ के उस फैसले को चुनौती दी है. जिसमें हाईकोर्ट की खंडपीठ ने फुल कोर्ट द्वारा Civil Judge को बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर उसकी बहाली के आदेश दिए थे.
Justice V Ramasubramanian and Justice Pankaj Mithal की पीठ ने Civil Judge पर लगे गंभीर आरोपो को छिपाने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट के प्रति नाराजगी करते हुए कहा कि जज का आचरण अस्वीकार्य है.
पीठ ने कहा ‘‘यह सच है कि कुछ आरोपों का न्यायिक घोषणाओं और न्यायिक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से संबंध होता है लेकिन वे विभागीय कार्यवाही का आधार नहीं बन सकते हैं. इसलिए, हम उन आरोपों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं.
पीठ ने कहा कि लेकिन जो आरोप प्रतिवादी की ओर से निर्णय तैयार करने/लिखने में घोर लापरवाही और उदासीनता से संबद्ध तथा अपरिवर्तनीय हैं, वे पूरी तरह से अस्वीकार्य और एक न्यायिक अधिकारी के लिए अशोभनीय हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में Civil Judge द्वारा दिए गए जवाब को भी बेहद गंभीरता से लेते हुए कहा कि जज का अपने बचाव में यह कहना भी पूर्णत: अस्वीकार्य है कि अनुभव की कमी और स्टेनोग्राफर की अक्षमता इसके लिए जिम्मेदार है.
पीठ ने अपने फैसले में हाईकोर्ट के प्रति सख्त शब्दों में ऐतराज जताते हुए कहा कि दुर्भाग्य से, हाईकोर्ट ने न केवल पंचतंत्र की इस कहानी को स्वीकार किया, बल्कि गवाह के रूप में स्टेनोग्राफर से जिरह नहीं करने के लिए प्रशासन तक को दोषी ठहरा दिया. इस तरह का हाईकोर्ट का दृष्टिकोण पूरी तरह से अस्थिर है.’’
हाईकोर्ट के रवैये पर नाराज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘‘अगर प्रतिवादी का यह मानना था कि सारा दोष स्टेनोग्राफर का है, तो स्टेनोग्राफर को गवाह के रूप में बुलाना उसका जिम्मा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने दुर्भाग्य से सबूत की जिम्मेदारी ही बदल दी.
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से हैरानी जताते हुए कहा कि उसके सामने ऐसा कोई मामला नहीं आया जिसमें हाईकोर्ट ने जुर्माने का आदेश खारिज करते हुए यह कहा हो कि कसूरवार के खिलाफ आगे जांच नहीं होगी. लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट ने एक नया उदाहरण तैयार करते हुए ऐसा ही किया.