सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार सिद्दकी कप्पन की जमानत में ढ़ील देने की मांग याचिका को स्वीकार कर लिया है. सुप्रीम कोर्ट से कप्पन ने मांग की थी कि वे उन्हें स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करने की शर्त में छूट दें. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब कप्पन को स्थानीय पुलिस स्टेशन में रिपोर्टिंग करने से छूट मिलेगी. बता दें कि अक्टूबर 2020 में हाथरस जाते समय गिरफ़्तार किए गए कप्पन को सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट से ही जमानत मिली थी, जिसमें दिल्ली में निवास करने और स्थानीय पुलिस को रिपोर्ट करने जैसी शर्तें शामिल थीं.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पीएस. नरसिम्हन और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कप्पन की जमानती शर्तों में ढील देने का फैसला किया है. पीठ ने अपने सितंबर, 2022 के फैसले को संशोधित करते हुए कहा कि अब से याचिकाकर्ता को स्थानीय थाने में रिपोर्ट करना आवश्यक नहीं होगा.
शीर्ष अदालत ने 17 सितंबर को राज्य सरकार से कप्पन की याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा था. कप्पन को अक्टूबर 2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था, जहां एक दलित महिला की सामूहिक बलात्कार के बाद मौत हो गई थी. नौ सितंबर, 2022 को शीर्ष अदालत ने लगभग दो साल से जेल में बंद कप्पन को जमानत देते हुए कहा था कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के लिए कई शर्तें रखी थीं, जिनमें यह भी शामिल था कि जेल से रिहा होने के बाद उन्हें अगले छह सप्ताह तक दिल्ली में रहना होगा और हर सप्ताह सोमवार को यहां निजामुद्दीन थाने में रिपोर्ट करना होगा. पीठ ने आदेश में कहा था कि अपीलकर्ता को तीन दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट में ले जाया जाएगा और ट्रायल कोर्ट द्वारा उचित समझी जाने वाली शर्तों के आधार पर उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा. आदेश में कहा गया कि जमानत की शर्त यह होगी कि अपीलकर्ता दिल्ली में निजामुद्दीन क्षेत्र के अंतर्गत रहेगा. शीर्ष अदालत ने आगे विस्तार से कहा कि छह महीने के बाद वह केरल में अपने पैतृक स्थान मलप्पुरम जा सकते हैं और वहां भी उन्हें स्थानीय थाने में इसी तरह यानी हर सोमवार को हाजिर होना होगा और वहां के रजिस्टर में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने रखे अन्य जमानती शर्त
प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के साथ कथित संबंध के आरोप में कप्पन सहित चार लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. पीएफआई पर पहले भी देश भर में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को वित्तपोषित करने का आरोप लग चुका है. पुलिस ने पहले दावा किया था कि आरोपी हाथरस में कानून-व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश कर रहा था. 14 सितंबर, 2020 को अपने गांव के चार लोगों द्वारा कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई महिला की घटना के एक पखवाड़े बाद दिल्ली के एक अस्पताल में मौत हो गई थी. उसका अंतिम संस्कार उसके गांव में आधी रात को कर दिया गया था. उसके परिवार ने दावा किया था कि अंतिम संस्कार उनकी सहमति के बिना किया गया तथा उन्हें शव को अंतिम बार घर लाने की अनुमति नहीं दी गई है.
(खबर PTI इनपुट से लिखी गई है)