Tripura's Teachers Against Job Cancellation: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को त्रिपुरा सरकार को राज्य के लगभग 79 स्नातक शिक्षकों द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें राज्य द्वारा 2017 और 2020 में जारी किए गए उनके बर्खास्तगी आदेशों को चुनौती दी गई है.
त्रिपुरा के शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए कहा कि उनके बर्खास्तगी आदेश "गैरकानूनी और असंवैधानिक" है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने त्रिपुरा सरकार को नोटिस जारी कर याचिका पर अपना पक्ष रखने को कहा है.
याचिका में बताया गया कि 2014 में, त्रिपुरा हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार द्वारा जारी एक निश्चित रोजगार नीति, 2003 को "कानूनी रूप से गलत" घोषित किया था जिसके चलते कथित तौर पर इस नीति के तहत की गई 10,000 से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द कर दिया था. परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ताओं को उक्त कानून के तहत मिली नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया.
शिक्षकों ने दावा किया कि उन्हें पिछली नीति की जगह वर्तमान में लागू भर्ती नियमों का सख्ती से पालन करते हुए भर्ती किया गया था, इसलिए यह 2014 के उच्च न्यायालय के फैसले के दायरे से बाहर है.
ANI की रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही के बारे में कभी भी जानकारी नहीं दी गई और उनके पीछे ही फैसला सुनाया गया.
अधिवक्ता अमृत लाल साहा, टीके नायक और आदित्य मिश्रा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि त्रिपुरा सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर घोटाला किया जा रहा है.
याचिका में दावा किया गया है कि ऐसे सभी बर्खास्त शिक्षकों के रोजगार और वेतन कोड अभी भी सक्रिय हैं और इसलिए, ऐसे शिक्षकों का मासिक पारिश्रमिक राज्य के खजाने से डेबिट किया जा रहा है और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों/नौकरशाहों द्वारा उसका दुरुपयोग किया जा रहा है.
याचिकाकर्ताओं ने आगे खुलासा किया है कि त्रिपुरा के प्रधान महालेखाकार (अतिरिक्त) कथित धोखाधड़ी की जांच कर रहे हैं.
याचिकाकर्ताओं ने राज्य में स्कूली शिक्षा व्यवस्था की खस्ताहाल स्थिति को भी उजागर किया है, जहां शिक्षकों की भारी कमी का खामियाजा मासूम छात्रों को भुगतना पड़ रहा है. इससे पहले 700 शिक्षकों ने भी इसी मुद्दे को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.