नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अपराधिक मामले में महत्वूपर्ण व्यवस्था देते हुए स्पष्ट किया है कि किसी आरोपी की मानसिक अक्षमता को साबित करने का भार खुद बचाव पक्ष पर होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने दो बेटों की हत्या के आरोपी एक पिता की ओर से दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज करने के आदेश दिए कि आरोपी अपराध से पूर्व न तो किसी चिकित्सकीय रूप से निर्धारित मानसिक बीमारी से पीड़ित था और न ही उसे विकृत दिमाग की कानूनी अक्षमता वाला व्यक्ति कहा जा सकता था. जिसे वह साबित करने में भी सफल नहीं हुए है.
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सुंधाशु धूलिया की पीठ ने कहा कि आरोपी पर अपने ही बेटो की हत्या का आरोप है और यह साबित करने का भार कि मानसिक विकार के परिणामस्वरूप आरोपी हत्या जैसे कृत्य के परिणाम को जानने में असमर्थ था, इसे साबित करने का भार भी आरोपी पर है.
आरोपी अपीलकर्ता प्रेमकुमार पर अपने ही दो बेटो की हत्या का आरोप है. अभियोजन के अनुसारर 3 मई 2009 को प्रेमकुमार ने अपने दो पुत्रों, जिनकी आयु लगभग 9 वर्ष और 6 वर्ष थी, को हैदरपुर नहर में ले जाकर उनका गला घोंटकर मार दिया.
हत्या करने के बाद उसने अपने बेटो के शवों को भी नहर में फेक कर घटना को ऐसे पेश किया जैसे कि यह दुर्घटनावश डूबने का मामला हो.
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी प्रेमकुमार को आईपीसी की धारा 302 और 201 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई. पुलिस जांच में यह सामने आया कि आरोपी एक आदतन शराबी था, और उसे अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह था और उसे ये लगता था कि दोनो बेटे भी उसके नहीं है.
आरोपी की ओर सुप्रीम कोर्ट में अपील पेश करते हुए बचाव में तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता के पास अपने ही बेटों को मारने का कोई कारण या मकसद नहीं था. और यह भी की अपीलकर्ता एक मानसिक रूप से अक्षम था.
अपील में कहा गयाा कि ट्रायल कोर्ट ने इस तथ्य को अनदेखा किया कि अपीलकर्ता एक स्वस्थ मानसिक स्थिती का व्यक्ति नही है. उसे नशामुक्ति के लिए एक पुनर्वास केंद्र में भी भर्ती कराया गया था और केंद्र की सलाह के खिलाफ छुट्टी दे दी गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की ओर से बचाव में दिए गए तर्क को पूर्णतया खारिज करते हुए कहा कि यह अभियोजन पक्ष का कर्तव्य है कि वह अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए प्राथमिक साक्ष्य को साबित करे.
अदालत ने कहा कि इस मामले में स्पष्ट है कि आरोपी ने बच्चों की हत्या के बाद उनके दुर्घटनावश डूबने का झूठा बयान देकर घटना को मोड़ देने की कोशिश की गयी है. जो कि मानसिक रूप से अस्वस्थता को नही दर्शाता.