Right To Be Forgotten हिंदी में इसे भूला दिए जाने का अधिकार कहते हैं. भूला दिए जाने का अधिकार Right To Privacy के तहत आया है. इसके अंतर्गत व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए उससे जुड़ी विवादास्पद चीजों को इंटरनेट से हटाने का अधिकार देती है. वहीं, बलात्कार आदि के संगीन मामलों में अदालत दोनों पक्षों के नाम को मास्क कर लगाने के निर्देश देती है.
लेकिन क्या Right To Be Forgotten केवल नाम को मिटाने तक ही सीमित हैं? क्या भूला दिए जाने के अधिकार के तहत क्या किसी अदालती फैसले (जजमेंट) को पब्लिक डोमेन से हटाने की इजाजत हैं? ऐसा ही वाक्या सुप्रीम कोर्ट के तहत आया जिसमें मद्रास हाईकोर्ट ने भूला दिए जाने के अधिकार के तहत एक जजमेंट को इंडियन कानून की वेबसाइट से हटाने के निर्देश दिए हैं (To Remove Judgement Order From Indian Kanoon Website).
जजमेंट को इंडियन कानून की वेबसाइट से हटाने के निर्देश,SC ने फैसले पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की.
सीजेआई ने कहा,
"हम अपराधिक अपील को सुनते हैं. हम या तो दोषी ठहरा सकते हैं या बरी कर सकते हैं. लेकिन हम जब कोई फैसला सुनाते हैं तो वह सार्वजनिक रिकार्ड का हिस्सा बन जाता है."
सीजेआई ने आगे कहा,
"मामला अगर बाल यौन शोषण का हो तो नाम छिपाए जा सकते हैं. ऐसे में हाईकोर्ट जजमेंट मिटाने का फैसला कैसे दे सकते हैं? इसके गंभीर परिणाम होंगे."
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है.
मद्रास हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में आरोपी के नाम और पर्सनल डिटेल्स को मास्क करने के निर्देश दिया. इसके साथ ही हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने 'इंडियन कानून' नामक वेबसाइट से जजमेंट को हटाने के निर्देश दिए. अदालत ने इस फैसले में भूला दिए जाने के अधिकार को लागू करते हुए व्यक्ति के निजता को बरकरार रखा. वहीं, जजमेंट को इंडियन कानून की वेबसाइट से हटाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद रोक लगा दिया है.