आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मतदाता सूची से मतदाताओं के नाम कथित तौर पर हटाए जाने पर उनकी टिप्पणियों के लिए उनके खिलाफ दायर मानहानि के मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी है.
अपने अंतरिम आदेश में, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की अध्यक्षता वाली पीठ ने जोर देकर कहा कि राजनीतिक विमर्श को "उच्च सीमा" पर रखा जाना चाहिए, साथ ही कहा कि यह सवाल कि क्या किसी राजनीतिक दल को मानहानि का मुकदमा दायर करने के लिए पीड़ित व्यक्ति माना जा सकता है, इस पर गहन जांच की आवश्यकता होगी.
न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा, "जारी नोटिस चार सप्ताह में वापस किया जाना चाहिए. इस बीच, आगे की कार्यवाही स्थगित रहेगी." दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2 सितंबर को अपने विवादित फैसले में आप नेताओं को अब निरस्त हो चुकी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499/500 के तहत अपराध करने के लिए जारी किए गए ट्रायल कोर्ट के समन आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता की पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, "याचिकाकर्ताओं द्वारा यह बचाव किया गया है कि आरोप सद्भावनापूर्ण और जनहित में लगाए गए थे, जिसे ट्रायल के दौरान साबित और स्थापित किया जाना चाहिए."
पीठ ने कहा, "वर्तमान मामले में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया अपमानजनक हैं, जिनका उद्देश्य भाजपा को बदनाम करना और यह आरोप लगाकर अनुचित राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है कि भाजपा विशेष समुदायों से संबंधित लगभग 30 लाख मतदाताओं के नाम हटाने के लिए जिम्मेदार है."
पीठ ने आगे कहा कि "मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने में किसी राजनीतिक दल की शायद ही कोई भूमिका हो, क्योंकि उक्त कार्य चुनाव आयोग को कानून के अनुसार करने के लिए सौंपा गया है."
मार्च 2019 में ट्रायल कोर्ट ने केजरीवाल, आतिशी और सुशील कुमार गुप्ता के साथ मनोज कुमार को भाजपा दिल्ली इकाई के अधिकृत प्रतिनिधि राजीव बब्बर की शिकायत पर तलब किया था. अपनी शिकायत में बब्बर ने दावा किया कि आप नेता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा के निर्देश पर चुनाव आयोग ने बनिया, पूर्वांचली और मुस्लिम समुदायों के 30 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए हैं.